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अनेकान्त 64/3, जुलाई-सितम्बर 2011 वर को कन्या चाहती थी, उसके गले में वरमाला डाल देती थी। तदनन्तर लोगों के द्वारा विभिन्न प्रकार के कौतुक और मंगलाचार के साथ कन्या का पाणिग्रहण होता था।
कभी-कभी कन्या वर की खोज में विभिन्न स्थानों पर जाती थी। एक बार मथुरा के राजा जितशत्रु ने अपनी पुत्री निर्वृत्ति को इच्छानुसार वर की खोज करने के लिए कहा। वह सेना और वाहन लेकर इन्द्रपुर गई। वहाँ के राजा इन्द्रदत्त के बाईस पुत्र थे। कन्या ने एक शर्त रखते हुए कहा- आठ रथ चक्र हैं, उनके आगे एक पुतली स्थापित है। जो कोई उसकी बाई आंख को बाण से बींधेगा, उसी का मैं वरण करूँगी। राजा अपने पुत्रों को लेकर रंगमंच पर उपस्थित हुआ। बारी बारी से राजा के सभी पुत्रों ने पुतली को बींधने का प्रयास किया, किन्तु कोई भी सफल नहीं हो सका। अन्त में राजा का एक पुत्र सुरेन्द्रदत्त, जो कि मंत्री की कन्या से उत्पन्न था, रंगमंच पर आया। चारों ओर से हो हल्ला होने लगा। दो व्यक्ति नंगी तलवार लेकर दोनों ओर खड़े हो गए और कुमार से कहा- यदि तुम इस कार्य में असफल रहे तो हम तुम्हारा सिर धड़ से अलग कर देंगे। कुमार उनकी चुनौती स्वीकार करते हुए आगे आया और देखते ही देखते पुतली की बाई आंख को बाण से बींध डाला। कुमारी ने उसके गले में वरमाला पहना दी।7।।
कभी-कभी पिता द्वारा कन्या के लिए विशेष वर का निर्धारण हो जाने पर भी किसी विशेष कारणवश कोई आवश्यक शर्त रख दी जाती थी कि जो कोई उस शर्त को पूरा करेगा, उसे ही कन्या दी जायेगी। उदाहरण स्वरूप विद्याधरों ने राजा जनक के सामने यह शर्त रखी कि वज्रावर्त धनुष को चढ़ाकर ही राम सीता को ग्रहण कर सकते हैं। राम उस शर्त को पूरा कर देते हैं और उनका सीता के साथ विवाह होता है। कभी-कभी वर की धीरता, वीरता तथा कुल और शील का परिचय प्राप्त करने के लिए युद्ध की आवश्यकता पड़ती थी। वर में जितने गुण होने चाहिए, उनमें शुद्ध वंश में जन्म लेना प्रमुख माना जाता था। कुल, शील, धन, रूप, समानता, बल, अवस्था, देश और विद्यागम ये नौ वर के गुण कहे गए हैं। उनमें भी कुल को श्रेष्ठ माना गया है। कुल नामका प्रथम गुण जिस वर में न हो, उसे कन्या नहीं दी जाती थी।
सोमा और विजयसेना गंधर्व आदि कलाओं के परम सीमा को प्राप्त थीं- इसलिए उनके पिता सुग्रीव ने ऐसा विचार कर लिया था कि जो गन्धर्व विद्या में इनको जीतेगा, वही इनका भर्ता होगा।
चारुदत्त की पुत्री गन्धर्वसेना, जो कि संगीतशास्त्र में पारंगत थी, की प्रतिज्ञा थी कि जो मुझे संगीतशास्त्र में जीतेगा, उसके साथ ही मैं विवाह करूँगी।
सोमशर्मा के भद्रा और सुलसा नामक दो पुत्रियाँ थीं, जो वेद व्याकरणादि शास्त्रों में परम पारगामिनी थीं। इन दोनों ने कुमारी अवस्था में ही वैराग्यवश परिव्राजक की दीक्षा ले ली और दोनों ही शास्त्रार्थ में अनेक वादियों को जीतकर परम प्रसिद्धि को प्राप्त हुई। ___ भगवान् ऋषभदेव की ब्राह्मी और सुन्दरी नाम पुत्रियाँ अक्षर, चित्र और गणितशास्त्र में पारंगत थी। एक स्थान पर मरुदेवी के अक्षरविज्ञान, चित्रविज्ञान, संगीतविज्ञान, गणित विज्ञान, आगमविज्ञान तथा कला-कौशल की प्रशंसा की गई है। अनेक स्त्रियाँ मधुर गान