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अनेकान्त 64/3, जुलाई-सितम्बर 2011
जीवनसंगिनी तथा सलाहकार समझी जाती थी। (सम. क. 1 पृ. 181) घर में प्रवेश करते ही सास-ससुर बहू का सम्मान करते थे तथा पति उसे जीवन साथी के रूप में ग्रहण करता था। अतः पति-पत्नी के बीच सहकारिता पूर्ण भावना के फलस्वरूप पत्नी को मित्रवत् समझा जाता था। (सम. क. 9 पृ. 925)
आदिपुराण में कहा गया है कि जननी को अपने पुत्र के विवाह के अवसर पर सबसे अधिक प्रसन्नता होती थी। मरुदेवी को नवीन पुत्रवधुयें प्राप्त कर अत्यधिक प्रसन्नता हुई।
पिता की अपेक्षा परिवार में माँ को अधिक प्रेम और सम्मान प्राप्त था। भगवती सूत्र में अम्म शब्द पितृ शब्द से पहले प्रयुक्त हुआ है-अम्मापियरो यहां यह भी ज्ञात होता है कि पति और पत्नी धर्म के समान सहभागी थे। यदि पति प्रव्रजित होने का निर्णय ले लेता था तो पत्नी कभी भी बाधक नहीं होती थी। धार्मिक क्षेत्र में वह पति का अनुगमन करती थी। इस प्रकार वह एक शांतिपूर्ण वातावरण का निर्माण करती थी। पति उसे जीवन यात्रा का सहभागी मानता था। सांसारिक कार्यों में वह उसे निंदनीय वस्तु नहीं मानता था। यह बात श्रेणिक तथा उसकी पत्नी चेलना तथा उदयन एवं उसकी पत्नी के संबन्धों से विदित होती है। सिन्धु सौवीर की रानी प्रभावती देवी भगवान् महावीर के पवित्र उपदेशों को सुनने के लिए राजगृह के बाहर गुणशिला चैत्य तथा वीतभय नगर के मृगवन की धर्मसभा में जाती है। जब उदयन संसार छोड़कर दीक्षा ग्रहण कर लेते हैं और भगवान् महावीर की शरण में चले जाते हैं तो वह बीच में बाधक नहीं बनती है।
हस्तिनापुर के राजा बल ने, जब उसकी रानी अर्द्धरात्रि के समय स्वप्न देखने के बाद उसके कक्ष में प्रविष्ट हुई, तब उसका स्वागत किया। पहले उसने उसे सुखासन पर बैठाया तथा मधुरवचन बोलकर उसका सम्मान किया। अनन्तर अप्रत्याशित आगमन के विषय में पूछा। उसने सम्मानजनक शब्दों में अपने स्वप्न का निवेदन किया और कहा कि एक सुन्दर सिंह को गर्जना करते हुए उदर में प्रविष्ट होते हुए देखा है। अपनी मेधा के आधार पर राजा ने इस स्वप्न की व्याख्या इस प्रकार की कि वह एक महान् पुत्र को जन्म देगी। अनन्तर उसने उसे इस सौभाग्य पर बधाई दी।
ब्राह्मणकुण्डग्राम में ऋषभदत्त ब्राह्मण ने भूशालक चैत्य में भगवान् महावीर के उपदेश सुने और वह प्रसन्नता पूर्वक बैलगाड़ी में बैठाकर पत्नी देवनन्दा को ले गया और दोनों ने भगवान् महावीर से प्रव्रज्या अंगीकार की। श्रावस्ती के श्रमणोपासक और श्रमणोपासिका शंख तथा उत्पला का जीवन आदर्श दाम्पत्य जीवन था, जो कि पारस्परिक प्रेम, श्रद्धा, भक्ति और सम्मान से भरा हुआ था। वे सांसारिक कार्यों और पूजन वगैरह में पवित्र हृदय से जीवन यापन करते थे। ___मंख मंखलि और उसकी पत्नी भद्रा ने निर्धनता की कठिनाईयों में रहकर भी शांति
और संतोष के साथ उतार-चढ़ाव वाली जिंदगी बिताई। भौतिक आपदायें उन्हें एक दूसरे से अलग नहीं कर सकीं और न उनकी शान्ति भंग कर सकीं। एकबार गृहविहीन जीवन व्यतीत करते हुए जब भद्रा गर्भवती थी तो उन्होंने सरवण ग्राम में एक ब्राह्मण गोबहुल की