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अनेकान्त 64/3, जुलाई-सितम्बर 2011
के पास जाकर नीचे आसन पर बैठी और उत्तम सिंहासन पर आरूढ़ हृदयवल्लभ को हाथ जोड़कर क्रम से स्वप्नों का निवेदन किया ।"
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माता के रूप में नारी अपरिमित श्रद्धा का भाजन थी । विजयाभिगमन के अवसर पर लव और कुश माता को प्रणाम कर मंगलाचारपूर्वक घर से निकले।" पत्नी के रूप में नारी पति को कुमार्ग में भटकने से बचाने का सदैव प्रयत्न करती थी। सीता की प्राप्ति हेतु युद्ध में प्रवृत्त रावण को समझाती हुई मंदोदरी कहती है- "आपका यह मनोरथ अत्यन्त संकट में प्रवृत्त हुआ है इसलिए इन इन्द्रिय रूपी घोड़ों को शीघ्र रोक लीजिए। आप तो विवेक रूपी सुदृढ़ लगाम को धारण करने वाले हैं। आपकी उत्कृष्ट धीरता, गंभीरता और विचारकता उस सीता के लिए जिस कुमार्ग से गई है, हे नाथ! जान पड़ता है, आप भी किसी के द्वारा उसी कुमार्ग से ले जाये जा रहे हैं"। 2 पिता के घर पुत्री का लालन-पालन बड़े स्नेह से होता था परन्तु पुत्री के यौवन अवस्था प्राप्त कर लेने पर पिता को यह चिंता लग जाती थी कि कन्या उत्तम पति को प्राप्त होगी या नहीं। 14
कन्याओं की शिक्षा-दीक्षा का पूरा प्रबन्ध किया जाता था। वे गंधर्व आदि विद्याओं में निपुण होती थीं।" आभूषण धारण करने की प्रथा स्त्रियों में प्रचलित थी।" चँवर ढोने, शय्या बिछाने, बुहारने, पुष्प विकीर्ण करने, सुगंधित द्रव्य का लेप लगाने, भोजन - पान बनाने आदि कार्यों में उनकी निपुणता का उल्लेख मिलता है।"
युद्धादि के लिए सेना के प्रयाण में भी स्त्रियाँ जाती थीं। वज्रनाभि की दिग्विजय के प्रसंग में सेना के साथ स्त्रियों के जाने का भी वर्णन हुआ है।" सार्वजनिक उत्सवों एवं अनेक प्रकार के आमोद-प्रमोदों में नारी की भूमिका महत्त्वपूर्ण है । "
कन्याएं अपने पिता से किसी विषय पर निःसंकोच बातचीत करती थीं। श्रीमती अपने पिता वज्रदन्त से अपने पूर्वभव के पति ललितांग के विषय में विभिन्न जिज्ञासायें व्यक्त करती है।" महाराजा वज्रबाहु की पण्डिता नाम की धाय बड़ी चतुर थी। श्रीमती को पूर्वजन्म के स्मरण होने पर पण्डिता ललितांग का चित्र लेकर महापूत जिनालय गई और ललितांग का परिचय प्राप्त कर वापिस आई। 2"
आदिपुराण से ज्ञात होता है कि कन्या और पुत्र में कोई अन्तर नहीं था। दोनों समान रूप से संस्कारित किए जाते थे। 2 आदिपुराण में कन्या जन्म को अभिशाप नहीं माना गया है। 23 बाल्यावस्था से ही कन्या को नूपुर आदि अलंकारों से अलंकृत किया जाता था ।24 समराइच्चकहा में कन्या की शिक्षा-दीक्षा पर विशेष बल दिया गया है; क्योंकि रूप, कला, विज्ञान आदि कन्या के गुण माने जाते थे। इन्हीं गुणों से युक्त कन्या विवाह के योग्य मानी जाती थी। चित्रकला के साथ-साथ उसे काव्य आदि की भी शिक्षा दी जाती थी। 26 माता-पिता अपनी कन्या को कला-विज्ञान आदि से सुशिक्षित करने का भरपूर प्रयास करते थे रूप, कला एवं विज्ञान आदि से युक्त कन्यायें युवावस्था को प्राप्त होने पर विवाह योग्य समझी जाती थी
समराइच्चकहा में भार्या को गृहणी नामक संज्ञा से संबोधित किया गया है। (सम.क. 4 पृ. 358) । वह घर गृहस्थी की साम्राज्ञी समझी जाती थी तथा अपने पति की