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अनेकान्त 64/3, जुलाई-सितम्बर 2011
गोशाला में शरण ली। वे एक गाँव से दूसरे गाँव घूमकर वर्षाकाल व्यतीत कर रहे थे, क्योंकि उनके पास रहने को घर नहीं था। गरीबी और कष्ट के बीच उपर्युक्त गोशाला में भद्रा ने मंखलिपुत्र गोशाल को जन्म दिया। उनकी जीवन यात्रा कठिनाईयों के मध्य साथ-साथ गुजरती गई किन्तु उन्होंने पत्नी और पति के पवित्र मिलन के आदर्श को तिलांजलि नहीं दी।
गृहस्थ जीवन में प्रवेश के निमित्त युवा और युवती को एक सूत्र में बाँधने के लिए विवाह होता था। भोगभूमि के समय स्त्री-पुरुष का जोड़ा साथ ही उत्पन्न होता था और प्रेमबन्धन बद्ध हुए साथ ही उनकी मृत्यु हो जाती थी। बाद में विवाह संबन्धी कई प्रथायें प्रचलित हुई। किसी शुभ दिन जबकि सौम्यग्रह सामने स्थित होते थे, क्रूर ग्रह विमुख होते थे और लग्न मंगलकारी होती थी, तब स्त्रियों के मंगलगीत, तुरही की ध्वनि आदि क्रियाओं के साथ कन्या को लेकर पिता वर के घर पर ही विवाह कार्य संपन्न करा देते थे। कभी-कभी वर के किसी सुन्दर रूप और गुणों वाली कन्या पर आसक्त हो जाने पर वह स्वयं अथवा उसका पिता कन्या के पिता से कन्या की प्राप्ति हेतु याचना करता था। पिता उसके कुल, रूप, गुण तथा आयु आदि का विचार कर स्वीकृति या अस्वीकृति देते थे। अस्वीकृति देने पर कभी-कभी युद्ध होता था और युद्ध में यदि वर पक्ष जीत जाता था तो उसके बल और पौरुष से प्रभावित होकर या विवशता के कारण उसे कन्या देनी पड़ती थी। पद्मचरित में प्रेम विवाह के बहुत से उदाहरण मिलते हैं। प्रेम का प्रारंभ कभी कन्या" की ओर से होता था, कभी वर की ओर से। कभी-कभी दोनों एक दूसरे को देखकर प्रेमपाश में बँध जाते थे।
उत्तराध्ययनसूत्र की सुखबोधा टीका से ज्ञात होता है कि गंधर्व देश की राजधानी पुण्ड्रवर्द्धन थी। वहाँ के राजा का नाम सिंहस्थ था। एकबार उसे उत्तरापथ से दो घोड़े उपहार में मिले। राजा ने उनकी परीक्षा करनी चाही। एक पर राजा स्वयं चढ़ा और दूसरे पर राजकुमार। राजा जिस घोड़े पर सवार हुआ था, वह विपरीत शिक्षा वाला था। ज्यों-ज्यों उसकी लगाम खींची जाती, त्यों-त्यों वह वेग से दौड़ता था। इस प्रकार वह घोड़ा राजा को लेकर 12 योजन चला गया। अन्त में राजा ने लगाम ढीली कर दी। घोड़ा वहीं रुक गया। घोड़े को वहीं एक वृक्ष से बाँध राजा पर्वत पर दीख रहे सात मंजिले प्रासाद पर चढ़ा और वहाँ एक युवती से गन्धर्व विवाह कर लिया।
पाञ्चाल राजा के पुत्र ब्रह्मदत्त ने अपने मामा पुष्पचूल की लड़की पुष्पावती से गंधर्व विवाह किया।
क्षितिप्रतिष्ठान नगर के राजा जितशत्रु ने एक दरिद्र चित्रकार की पुत्री कनकमञ्जरी के वाक्कौशल से प्रभावित होकर गंधर्व विवाह कर लिया। यह अन्तर्जातीय विवाह का भी उदाहरण है।
गंधर्व विवाह के साथ स्वयंवर प्रथा के भी उल्लेख मिलते हैं। स्वयंवर पद्धति में पुत्री का पिता अनेक लोगों को आमंत्रित करता था। सुसज्जित मंच के ऊपर राजाओं को बैठाकर प्रतीहारी क्रम से कन्या को राजाओं का परिचय देती जाती थी। अन्त में जिस