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जैन विद्या में जीव-तत्त्व-सिद्धि
-डॉ. बसन्त लाल जैन तत्त्व का अर्थ
तत्त्व का अर्थ है 'सारभूत पदार्थ'। 'तत्' शब्द से 'तत्त्व' शब्द बना है। संस्कृत भाषा में तत् शब्द सर्वनाम है। सर्वनाम शब्द सामान्य अर्थ के वाचक होते हैं। तत् शब्द से भाव अर्थ में 'त्व' प्रत्यय लगाकर 'तत्त्व' शब्द बना हुआ है। तत् का अर्थ है 'वह' और 'त्व' का अर्थ है- भाव या पना। अर्थात् वस्तु का भाव या पना ही तत्त्व है। तस्य भावः तत्त्वम्' अर्थात् वस्तु के स्वरूप को तत्त्व कहा जाता है। जैसे- अग्नि का अग्नित्व, स्वर्ण का स्वर्णत्व, मनुष्य का मनुष्यत्व आदि। 'तत्त्व' शब्द बहुत व्यापक है। यह अपनी समस्त जाति में अनुगत रहता है। जैसे-स्वर्णत्व समस्त स्वर्ण जाति में व्याप्त है। वह एक है, भले ही स्वर्ण अलग-अलग है। उसी प्रकार सभी जीवों का जीवत्व एक है भले ही जीव अनेक
आत्मवादी दर्शन में आत्म सिद्धि
भारतीय दर्शन में आत्मा के अस्तित्व को स्वीकार करने वाले दर्शन को आत्मवादी दर्शन कहा जाता है और आत्म-अस्तित्व को स्वीकार न करने वाले दर्शन को अनात्मवादी दर्शन माना जाता है। चार्वाक और बौद्धदर्शन अनात्मवादी दर्शन माने जाते हैं क्योंकि इन दर्शनों में आत्मा नामक तत्त्व को नहीं माना गया है, जो पूर्व और उत्तर जन्म में स्थायी रूप से रहता है। शेष दर्शन पुनर्जन्म रूप में आत्मतत्त्व को स्वीकार करते हैं, इसलिए न्याय, वैशेषिक, सांख्य, मीमांसा, अद्वैतवेदांत और जैनदर्शन को आत्मवादी दर्शन कहा जाता है।
(क) गौतम ऋषि ने न्याय सूत्र में अनुमान प्रमाण और शास्त्रीय आधार पर आत्मा का अस्तित्व सिद्ध किया है तथा कणाद ऋषि ने वैशेषिक सूत्र में आत्मा के अस्तित्व को अनुमान प्रमाण द्वारा सिद्ध किया है।
प्राणापान, निमेषोन्मेष, जीवन, इन्द्रियान्तर विकार, सुख-दु:ख, इच्छा, द्वेष, संकल्प आदि को आत्मा के लिंग कहकर इन्हीं से आत्मास्तित्व सिद्ध किया है। इसी प्रकार न्याय सूत्रकार ने भी इच्छा, द्वेष, प्रयत्न, सुख-दु:ख, विनिर्णयात्मक ज्ञान हेतुओं के द्वारा आत्मा की सत्ता को अनुमान द्वारा सिद्ध किया है। न्यायदर्शन में मानसप्रत्यक्ष के द्वारा भी आत्मा की सत्ता को सिद्ध किया गया है लेकिन वैशेषिकदर्शन में कणाद और प्रशस्तपाद आत्मा को मानस प्रत्यक्ष नहीं मानते हैं।' (ख) सांख्यदर्शन में आत्मसिद्धि
१. सांख्यदर्शन के अनुसार समुदाय रूप जड़ पदार्थ दूसरों के लिए होते हैं स्वयं के लिए नहीं। प्रगति और उसके समस्त कार्य संघात रूप होने से जिसके लिए है वही पुरुष है।