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अनेकान्त 64/1, जनवरी-मार्च 2011
आचरण के साथ खेती करना) 3 दत्ति- दयादत्ति, पात्रदत्ति (मुनिसंघ तथा आर्यिका संघों को दान) समदत्ति (समान क्रिया, आचार और समानव्रतादि के पालने वालों को श्रद्धा के साथ दान) 4. अन्वयदत्ति (वंश की प्रतिष्ठा के लिए पुत्र को समस्त कुल पद्धति तथा धन के साथ कुटुम्ब को समर्पण करना) तथा स्वाध्याय, संयम और नय साधने का उपदेश दिया। आचार्य पद्मनंदि ने इन्हीं को देवपूजा, गुरूपासना, स्वाध्याय, संयम, तप और दान ये षट्कर्म का नाम दे प्रतिदिन पालने का उपदेश दिया। द्विजों-ब्राह्मणों की व्याख्या करते हुए "महापुराण' में कहा है कि
द्विजातो हि द्विजन्मेष्ट: क्रियातो गर्भतश्च यः। क्रिया मंत्र विहीनस्तु केवलं नामधारकः॥४८॥ तदेषां जातिसंस्कारं दृढयन्निति सोऽधिराट्। स प्रोवाच द्विजन्मेभ्यः क्रियाभेदानशेषतः॥४९॥ ताश्च क्रियास्त्रिधाऽऽम्नाताः श्रावकाध्यायसंग्रहे। सदृष्टिभिरनुष्ठेया महोदर्काः शुभावहाः॥५०॥ गर्भान्वयक्रियाश्चैव तथा दीक्षान्वयक्रियाः।
कन्वयक्रियाश्चेति तास्त्रिधैवं बुधैर्मताः॥५१॥ "जो एक बार गर्भ से और दूसरी बार क्रियासंस्कार से जन्म लेता है वह द्विज या ब्राह्मण है किन्तु क्रिया और मंत्र दोनों से हीन द्विज मात्र नाम से द्विज है।48।।"
अतः इन द्विज जाति के जनों के संस्कार को दृढ़ करते हुए निम्नक्रियाओं के समस्त भेद भरत चक्रवर्ती ने कहे।।49।। ___ "श्रावकाध्याय संग्रह" में द्विजों की वे क्रियायें तीन प्रकार की कही गई हैं। सम्यक्दृष्टि पुरुषों को उन उत्तम फल देने वाली तथा शुभ-कल्याण करने वाली क्रियाओं को पालना चाहिये।।50।।
“विद्वानों ने 1. गर्भान्वय क्रिया 2.दीक्षान्वय क्रिया 3. कन्वय क्रिया इस प्रकार तीन प्रकार की क्रियायें बताई हैं। "महापुराण" के 38वें सर्ग में इन तीनों क्रियाओं के भेदों को बताते हुए कहा है
आधानाद्यास्त्रिपंचाशत् ज्ञेया: गर्भान्वयक्रियाः। चत्वारिंशदथाष्टौ च स्मृताः दीक्षान्वयक्रियाः॥५२॥ कन्वयक्रियाश्चैव सप्त तज्ज्ञैः समुच्चिताः॥
तासां यथाक्रमं नामनिर्देशोऽयमनूद्यते॥५३॥ "आधानादि गर्भान्वय क्रियायें 53 हैं, दीक्षान्वय क्रियायें 48 हैं और विद्वानों ने 7 कर्ज़न्वय क्रियायें संग्रहीत की हैं। आगे इन सब के नामों का निर्देश किया जाता है।"53।।
इस लेख का संबन्ध केवल विद्यार्थी जीवन से संबद्ध "प्रथम गर्भान्वय क्रिया से लेकर 16वीं "व्रतावतरण क्रिया" तक है। अतएव मैं "महापुराण" के 38वें सर्ग के दो पद्यों द्वारा उन 16 संस्कारों-क्रियाओं का मात्र उल्लेख कर उन पर विस्तार से प्रकाश