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मुनिवर-स्तुति
गुरु समान दाता नहिं कोई
गुरु समान दाता नहिं कोई। भानु प्रकाश न नाशत जाको, सो अंधियारा डारै खोई। गुरु......
मेघ समान सबनपै बरसै, कछु इच्छा जाके नहिं होई। नरक पशुगति आगमाहितै,
सुरग मुकत सुख थापै सोई। गुरु..... तीन लोक मंदिर में जानौं, दीपकसम परकाशक लोई। दीपतलैं अंधियारा भरयो है, अन्तर बहिर विमल है जोई। गुरु.....
तारन तरन जिहाज सुगुरु है, सब कुटुम्ब डोवै जगतोई। 'द्यानत" निशिदिन निरमल मन में, राखो, गुरु-पद पंकज दोई। गुरु.....
- पं. द्यानतराय जी