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अनेकान्त 64/3, जुलाई-सितम्बर 2011
अहंत भगवान् की पूजा आरोग्य प्राप्ति के लिए, सिद्ध का स्तवन (पूजा) कर्मबंधन से मुक्त होने के लिए, आचार्य को हृदय कमल में विराजमान करके उपाध्याय को पुण्य और श्रुत की प्राप्ति के लिए तथा आत्मा की साधना के लिए साधु परमेष्ठी की पूजा करना चाहिए। चिंतामणि को देने वाले सम्यग्दर्शन की भक्तिपूर्वक पूजा करें। हिताहित को देखने वाले नेत्र के समान सम्यग्ज्ञान की तथा धर्मबुद्धिपूर्वक चारित्र की शरण में जाकर पूजा करनी चाहिए। अतदाकार (निराकार) पूजन के अन्तर्गत दर्शन, ज्ञान, चारित्र भक्ति, अर्हत्, सिद्ध, आचार्य, चैत्य और शांति भक्ति करना चाहिए।
पूजन करने की विधि या दिशा
यदि जिनबिम्ब का मुख पूर्व दिशा की ओर हो तो उत्तर दिशा की ओर मुँह करके खड़ा होकर मन, वचन, काय को स्थिर रखते हुए निम्नांकित 6 प्रकार से पूजन करना चाहिए
प्रस्तावना पुराकर्म स्थापना संनिधापनम्।
पूजा, पूजाफल चेति षड्विधं देवसेवनम्॥१५ १. प्रस्तावना- जिनेन्द्र भगवान् का अभिषेक करना। इसके तीन प्रयोजन हैं-शारीरिक मल को दूर करना, जलार्चन द्वारा पूज्यता का समावेश तथा गार्हस्थिक कामादि सेवन गत दोषों की विशुद्धि। जिनेन्द्रदेव का परमौदारिक शरीर मल रहित होता है, वे कामादि सेवन नहीं करते तथा तीनों लोकों में पूज्य हैं अतः पुण्य संचय के लिए अभिषेक करता हूँ।
२. पुराकर्म- वेदी के चारों कोनों में जल से भरे चार घटों को स्थापित करना।
३. स्थापना- जल से शुद्ध किया गया, अर्घ्य दिया गया तथा जिस पर 'श्रीं ह्रीं' लिखा गया, ऐसे सिंहासन पर जिनेन्द्र भगवान् की प्रतिमा को स्थापित करना।
४. संनिधापन- जिनबिम्ब साक्षात् भगवान् हैं, सिंहासन सुमेरु पर्वत है, घटों में भरा जल क्षीरसागर का है और अभिषेक के लिए तैयार "मैं" साक्षात् इन्द्र हूँ ऐसी भावना करना संनिधापन है।
५. पूजा- इक्षु आदि रसों, घृत, दुग्ध और चंदन आदि सुगंधित जल से अभिषेक करना, अभिषेक के पश्चात् आरती करना, फिर अष्ट द्रव्य से पूजन करना चाहिए। पूजन के पश्चात् उनका स्तवन, नाम की जाप, ध्यान और शास्त्र का स्वाध्याय करना चाहिए।
६. पूजा का फल- जब तक आपका परम पद स्थान मुझे प्राप्त न हो जावे तब तक आपके चरणों में मेरी भक्ति रहे तथा चित्तवृत्ति में परोपकार, प्राणियों में मैत्रीभाव तथा आतिथ्य सत्कार की भावना बनी रहे। पूजा के प्रकार- पूजा के विशेष पाँच प्रकार होते है
नित्यमह पूजा, आष्टाह्निक (नंदीश्वर पूजा), चतुर्मुख महामह पूजा, कल्पद्रुम पूजा एवं ऐन्द्रध्वज पूजा।
१. नित्यमह पूजा- जिन साधनों से पूजन के लिए सदैव सामग्री मिलती रहे उन साधन सामग्री के दान देने को आगम में नित्यमह कहा है। घर की सामग्री से प्रतिदिन पूजन