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अनेकान्त 64/2, अप्रैल-जून 2011
अपनी आजीविका करते थे, वे सब वैश्य कहलाते थे। भगवान् ऋषभदेव ने अपने उरुओं से यात्रा दिखलाकर वैश्यों की रचना की, क्योंकि जल, थल और दूर-देशों की यात्रा करके व्यापार करना उन लोगों की मुख्य आजीविका है। इस प्रकार प्रजा की सुख सुविधा हेतु देश-देशान्तर की यात्रा करके व्यापार द्वारा लोगों की आवश्यक वस्तुओं की पूर्ति करना, वैश्यों का कार्य है। देश की समृद्धि में वैश्यों की प्रमुख भूमिका होती है। 42वें पर्व में कहा गया है कि राज्य के अधीन समस्त भूमि में किसानों को साधन सुलभ करवाकर खेती करायी जाये और किसानों से उचित अंश लेकर राज्य में धान्य-संग्रह किया जाये। इससे राजा के यहाँ प्रभूत संपत्ति इकट्ठी हो जायेगी, जिससे राजा का और बल बढ़ेगा। यहां गोपालक का उदाहरण सहित उल्लेख है," जिससे ज्ञात होता है कि उस समय गोपालन का व्यवसाय प्रसिद्ध था।
श्रमण संस्कृति का नियामक तत्त्व श्रम, आचार्य जिनसेन की षट्-कम व्यवस्था का बुनियादी सच बनकर उभरा है, जो आज भी पूरी तरह से प्रासंगिक है, असि (सैनिक वृत्ति), मसि (लिपिक वृत्ति), कृषि, विद्या, वाणिज्य और शिल्प नामक षट्कर्म आदिपुराण में अपने मौलिक स्वरूप में आख्यायित हुए हैं और आज भी संपूर्ण अर्थतंत्र या समाजतंत्र की बुनियाद हैं।
असि कर्म से तात्पर्य है सैन्यवृत्ति अर्थात् सुरक्षा प्रक्रमों में योगदान के जरिये, आजीविका, अस्त्रों के धारण करने से आजीविका। आचार्य जिनसेन ने राजसत्ता के प्रभावी तत्त्व के रूप में सैन्य बल' को रेखांकित किया है। 'क्षत्रियाः शस्त्रजीवितम्।' पद के माध्यम से यह स्पष्ट किया गया है कि आयुधों के माध्यम से आजीविका चलाने वाली एक विशेष जाति थी और उनका सम्मान समाज करता था। वर्तमान कालखण्ड में असिवृत्ति के महत्त्व को पूरा विश्व सर्वोच्च प्राथमिकता दे रहा है। असिवृत्ति के माध्यम से शांति को सुनिश्चित करना, जिससे विकास के चक्र को गति मिल सके, यही लक्ष्य है आदिपुराण की रचना का।
इस प्रकार हम देखते हैं कि आदिपुराण के रचयिता ने असिवृत्ति की जो अवधारणा रची थी, वह आज समय की शिला पर प्रासंगिक तो है ही, पूर्णरूपेण विकसित भी हुई है।
लिपि कार्य में संलिप्त रहकर अपनी आजीविका चलाने के कार्य को मसि कर्म की संज्ञा दी गयी है। प्रशासनिक कार्यों के संपादन में समस्त घटनाक्रम को, परिस्थितियों को, आदेशों को लिपिबद्ध करते हुए अभिलेखित करने के कार्य को मसि कर्म के क्षेत्र में आचार्य जिनसेन ने रखा है। राजा के संदेशों और आदेशों को लेखन की इस परिधि में रखा गया है, बिल्कुल वैसे ही जैसे आज के आशु लिपिक कार्य किया करते हैं। ये मसिकर्मी आज भी प्रशासन के प्राण हैं और किसी भी संचिका के कथ्य के भाग्य विधाता हैं। शासन की दशा और दिशा का निर्धारण ये मसिकर्मी आदिपुराण के भारत से आज तक करते आ रहे हैं।
आदिपुराण में भूकर्षण को कृषि कम' की संज्ञा दी गयी है। कृषि-जीवी श्रमिक