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जीवन और समाज का आधार : अनेकान्त
-डॉ. अनेकान्त कुमार जैन
दर्शन के किसी भी सिद्धान्त का महत्त्व सिर्फ इस बात तक सीमित नहीं रहता कि वह निःश्रेयस की प्राप्ति के लिए कितना जरूरी है, और न ही सिर्फ इस बात तक सीमित रहता है कि उसने प्रकृति के रहस्यों की कितनी सटीक व्याख्या की है? आज के इस दौर में दर्शन का महत्त्व इस बात से भी आँका जा रहा है कि दर्शन के अमुक सिद्धांत या अवधारणा की उपयोगिता जीवन व समाज में कितनी है? यदि वह सिद्धांत या अवधारणा हमारे जीवन और समाज की रोजमर्रा की समस्याओं में समाधान बनकर सामने नहीं आती है तो उसका शास्त्रीय महत्त्व चाहे जितना हो मनुष्य के व्यावहारिक जीवन में उसकी कीमत नहीं रहती।
आज अनेकान्त दर्शन की धूम मच रही है। वह इसलिए क्योंकि उसने वस्तु तत्त्व को समझाने के साथ साथ जीवन और समाज से जुड़ी तमाम समस्याओं के समाधान भी दिये हैं। भूमण्डलीकरण के इस दौर में यदि अनेकान्त सिद्धान्त को स्वीकार न करें तो जीवन संकट में पड़ सकता है। यह बात अपने आप में सत्य है कि भगवान् महावीर ने आज से लगभग 2600 वर्ष पहले प्रकृति के इस महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त की व्याख्या की किन्तु फिर भी इतने मात्र से अनेकान्त दर्शन को किसी धर्म, मजहब, संप्रदाय या दर्शन मात्र के सीमित दायरे में देखना बहुत बड़ी भूल होगी।
महापुरुषों का जीवन वास्तव में संपूर्ण मानव जाति एवं अन्य सभी जीवों के लिए होता है। इसलिए यह सत्य होते हुये भी कि यह जैनधर्म की मौलिक देन माना जाता है इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि कम या अधिक रूप में इसके सूत्र सभी धर्मो तथा दर्शनों में प्राप्त होते हैं। दरअसल अनेकान्त एक अस्तित्व है, एक जीवन है। अनेकान्त से इंकार अस्तित्व से इंकार होगा। जीवन का प्रत्येक क्षेत्र, जीवन घटनायें, प्रकृति के प्रत्येक संबन्ध अनेकान्त स्वरूप हैं। मेरी यह स्पष्ट मान्यता है कि हम चाहें तो भी एकान्तवादी नहीं हो सकते क्योंकि मेरी दृष्टि में एकान्त असत् का सूचक है।
फिर सहज ही मन में यह प्रश्न उपस्थित होता है कि अनेकान्त का नियम न मानने वालों को, वस्तु की अनन्त धर्मता को अस्वीकृत करके उसके किसी एक धर्म को ही वस्तु का स्वभाव मानने वालों को (शास्त्रों में) एकान्तवादी क्यों कहा गया है? इस प्रश्न के जवाब में भी मेरा मात्र इतना कहना है कि सच है कि उनकी मान्यता एकान्तवाद की है। इसी दृष्टि से वे एकान्तवादी कहे गये हैं किन्तु उनका भी जीवन व्यवहार एकान्तवादी नहीं हो सकता, अपने सामाजिक जीवन में यदि वे एक ही पक्ष को लेकर चलेंगे तो जी नहीं सकते। सामाजिक जीवन में ऐसे लोग भी अनेकान्त की ही अनुपालना