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अनेकान्त 64/2, अप्रैल-जून 2011 ब्रह्म, ब्रह्मोत्तर, लान्तव, कापिष्ठ
पद्म लेश्या शुक्र, महाशुक्र, शतार, सहस्रार
पद्म, शुक्ल लेश्या आनतादि
शुक्ल लेश्या अनुदिश एवं अनुत्तर
परम शुक्ल लेश्या यहाँ आगम की रक्षा के साथ सूत्र की जो संगति बैठाई गई है, वह उन सभी के लिए अनुकरणीय है, जो जरा-जरा सी बात पर आचार्यों की कमियाँ निकालने में बुद्धि का व्यायाम करते हैं। ७. तकविदग्धता
पूज्यपादाचार्य की तर्कविदग्धता आगम की परिरक्षा के लिए सुरक्षित है। जब उनसे पूछा गया कि मिश्र लेश्यायें तो कही नहीं गई हैं, तब उनको कैसे ग्रहण किया है? तो वे तुरन्त कहते हैं-साहचर्यात् लोकवत्। छत्रिणो गच्छन्ति इति अच्छत्रिषु छत्रव्यवहारः।' (४.२२)
अर्थात् साहचर्यवश मिश्र लेश्याओं का ग्रहण होता है। जैसे लोक छत्री (छाते वाले) जाते हैं ऐसा करने पर अछत्रियों में भी छत्रियों का व्यवहार होता है। ऐसी तर्कविदग्धता वास्तव में क्वचित् कदाचित् ही प्राप्त होती है। ८. लिंगभेद एवं वचनभेद का स्पष्टीकरण
सर्वार्थसिद्धि वृत्ति का यह वैशिष्ट्य है कि यदि किसी सूत्र में लिंगभेद और वचनभेद है तो उसका स्पष्टीकरण किया गया है। इस संदर्भ में निम्नलिखित सूत्रों की वृत्ति द्रष्टव्य हैसूत्र- 'सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः। (1.1) वृत्ति- 'मार्ग इति चैकवचननिर्देश: समस्तस्य मार्गभवज्ञापनार्थः। तेन व्यस्तस्य मार्गत्वनिवृतिः कृता भवति। अतः सम्यग्दर्शनं सम्यज्ञानं सम्यक्चारित्रमित्येतत् त्रितयं समुदितं मोक्षस्य साक्षान्मार्गो वेदितव्यः।( (सर्वार्थसिद्धि,1.1) सूत्र- 'जीवाजीवास्रवबन्धसंवरानिर्जरामोक्षास्तत्त्वम्।' (1.2) वृत्ति- "विशेषणविशेष्यसम्बन्धे सत्यपि शब्दशक्तिव्यपेक्षया उपात्तलिंगसंख्याव्यतिक्रमो न भवति।' (सर्वार्थसिद्धि,1.2)
यहाँ लिंग एवं वचन के व्यतिक्रम की युक्तियुक्तता स्पष्ट करते हुए यह भी कहा गया है कि 'अयं क्रमः आदिसूत्रेऽपि योज्यः।' (सर्वार्थसिद्धि,1.2) अर्थात् यह क्रम प्रथम सूत्र में भी लगा लेना चाहिए। इसी प्रकार अन्य स्थलों में भी स्पष्टीकरण किया गया है। ९. 'च' का एकाधिक प्रयोग के प्रयोजन का स्पष्टीकरण
यदि किसी सूत्र में एक से अधिक बार च शब्द का प्रयोग किया गया है तो पूज्यपादाचार्य ने उसका स्पष्टीकरण अवश्य किया है। यथा-'औपशमिकक्षायिकौ भावौ मिश्रश्च जीवस्य स्वतत्त्वमौदयिकपारिणामिको च'। (तत्त्वार्थसूत्र 2.1) इस सूत्र की वृत्ति में पूज्यपादाचार्य दो 'च' के प्रयोग का स्पष्टीकरण करते हुए कहते हैं कि 'नैवं शङ्क्यम्। अन्यगुणापेक्षया इति प्रतीयते। वाक्ये पुनः एति 'च' शब्देन प्रकृतोभयानुकर्षः कृतो भवति।