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अनेकान्त 64/1, जनवरी-मार्च 2011
न हों, निरन्तर द्रव्य के साथ रहें उसे गुण कहते हैं।"
गुण दो प्रकार के होते हैं- सामान्य गुण और विशेष गुण।
सामान्य गुण- जो गुण सभी द्रव्यों में समान रूप से पाये जाते हैं उन्हें सामान्य गुण कहते हैं। जैसे- अस्तित्व, वस्तुत्व आदि।
विशेष गुण- जो गुण एक द्रव्य को दूसरे द्रव्य से पृथक् करते हैं वे विशेष गुण कहलाते हैं। जैसे- ज्ञान, दर्शन, स्पर्श, गति आदि।
पर्याय का वर्णन करते हुए आचार्य लिखते हैं कि तद्भावः परिणाम:' अर्थात् उसका होना अथवा प्रतिसमय बदलते रहना परिणाम है और परिणाम को ही पर्याय कहा जाता है। यहां आचार्य यह कहना चाहते हैं कि गुणों के परिणमन को पर्याय कहते हैं। द्रव्य के विकार विशेष रूप से भेद को प्राप्त होते रहते हैं अत: ये पर्याय कहलाते हैं। जो सर्व ओर से भेद को प्राप्त करे वह पर्याय है। आचार्य देवसेन स्वामी के अनुसार गुणों के विकार को पर्याय कहते हैं। अर्थात् जब गुणों में किसी प्रकार की विकृति आती है तो उसको ही पर्याय कहते हैं।
इन सब आचार्यों के द्वारा बताये गये स्वरूप में एक बात सामान्य यह है कि परिणमन शब्द का प्रयोग प्रत्येक आचार्य ने किया है। इससे यह प्रतीत होता है कि परिणमन का नाम ही पर्याय है। अतः जो द्रव्य में स्वभाव और विभाव रूप से सदैव परिणमन करती रहती है अथवा जो द्रव्य में क्रम से एक के बाद एक आती रहती है उसे पर्याय कहते हैं।
द्रव्य के सामान्य-विशेष गुण एवं पर्यायों को विशेष रूप से जानने के इच्छुकजन आलापपद्धति नामक ग्रन्थ जो कि आचार्य देवसेन स्वामी द्वारा रचित है, का अध्ययन करें। आचार्य कहते हैं कि- जैसे गोरस अपने दूध-दही-घी आदिक पर्यायों से जुदा नहीं है, उसी प्रकार द्रव्य अपनी पर्यायों से जुदा अर्थात् पृथक् नहीं है और पर्याय भी द्रव्य से जुदे नहीं हैं। इसी प्रकार द्रव्य और पर्याय की एकता है। आचार्य कहते हैं कि-द्रव्य और गुणों की एकता है। जैसे-एक आम द्रव्य है और उसमें स्पर्श,रस,गन्ध,वर्ण गुण हैं। यदि आम न हो तो जो स्पर्शादि गुण हैं, उनका अभाव हो जाय क्योंकि आश्रय के बिना गुण नहीं रह सकते हैं और यदि स्पर्शादि गुण न हों तो आम का अभाव हो जायेगा क्योंकि अपने गुणों से ही आम का अस्तित्व है।
द्रव्य के भेद - द्रव्य के मुख्य रूप से दो भेद कहे गये हैं जीवद्रव्य और अजीव द्रव्य। आचार्य वीरसेन स्वामी ने द्रव्य के दो भिन्न रूप से भी भेद माने हैं- संयोग द्रव्य और समवाय द्रव्य।
संयोग द्रव्य- अलग-अलग सत्ता वाले द्रव्यों के मेल से जो उत्पन्न हो उसे संयोग द्रव्य कहते हैं। जैसे- दण्डी, छत्री, मौलि।
समवाय द्रव्य- जो द्रव्य में समवेत हो अर्थात् कथञ्चित् तादात्म्य रखता हो उसे समवाय द्रव्य कहते हैं। जैसे- गलकण्ड, काना, कुबड़ा आदि।
अजीव द्रव्य के पुनः पाँच भेद होते हैं- पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल।"