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देवलोकः कौन उपास्य कौन अनुपास्य
- डॉ. राजेन्द्र कुमार बंसल
"शासन देवता उपास्य या अनुपास्य' एवं 'दीपावली पूजनम्' दो कृतियाँ समान उद्देश्यों एवं भावों को व्यक्त करने वाली महासभा के चिंतन और दर्शन का प्रतिनिधित्व करती हैं। दीपावली पूजनम् कृति को प्रकाशित करने का उद्देश्य "जैनदर्शन की लुप्त प्रायः संस्कृति को पुनर्जीवित करना है। जैनदर्शन के नाम से प्रकाशित होने वाली कृतियों में कहीं भी जैनत्व की वीतरागता का संकेत/ वर्णन नहीं मिला। यक्षी संस्कृति के आढ़ में वैदिक मान्यताओं का पोषण भी अनुभूत हुआ। लेखक के मत से असहमत व्यक्तियों/ विद्वानों को मूढ, दुष्ट, मूर्ख, धूर्त, नरकगामी सम्बोधनों से अलंकृत कर अपने मलिन भावों का सुन्दर परिचय लेखक ने दिया है। स्वर्ग और नरक भावों का ही फल है। ___ 'शासन देवता उपास्य या अनुपास्य' के अंतिम पाठ की विषय सामग्री एवं 'दीपावली पूजनम्' के प्रथम पाठ की सामग्री का आधार, त्रिलोकसार की गाथा 988 पर श्री पं. टोडरमल जी एवं श्री पं. सदासुखदास जी की टीका है। अंतर इतना ही है कि शासन देवता उपास्य के अंतिम निष्कर्ष में सर्वाण्ह एवं सनत्कुमार यक्षों को पूज्य कहा, वहीं दीपावली पूजनम् के पृष्ठ 9 में इन यक्षों के नाम के पहले लक्ष्मी व सरस्वती का नाम और जोड़ दिया है। चूंकि दीपावली पूनजम् पुनर्शोधित है, अतः यह कथन भी नवीन परिस्थितियों के अनुसार पुनर्सशोधनीय मानना चाहिए। इन पुस्तकों में उक्त दोनों विद्वानों को मंत्र-तंत्र मूढ़ घोषित किया है। इनका अपराध इतना था कि उन्होंने शासन देवताओं, यक्ष-यक्षिणियों और क्षेत्रपाल-पद्मावती को पूज्य नहीं माना। 'शासनदेवता उपास्य' पुस्तक में मुनियों द्वारा शासन देवताओं एवं अन्य रक्षक देवों की स्तुति एवं नमस्कार करने आदि की अनुमति प्रदान की गयी है। आचार्य पद्मनंदि जी ने इसे आशीर्वाद दिया है। इसका निहितार्थ यह है कि जिनदीक्षाधारियों को भी शासन देवता आदि की स्तुति करना आगमोक्त है। __शासनदेवता यक्ष-यक्षिणी, क्षेत्रपाल-पद्मावती आदि की पूज्यता का आधार त्रिलोकसार की गाथा 988 में वर्णित अकृत्रिम जिनमंदिरों की व्यवस्था है। सुरलोक के अकृत्रिम के जिनमंदिरों का स्वरूप/व्यवस्था समझने के लिए तिलोयपण्णत्ति का अध्ययन किया। भवनवासी, व्यंतर, ज्योतिष एवं सुरलोक के जिनेन्द्र भवनों की मूर्तियों की स्थिति इस प्रकार हैभवनवासी देव- (तृतीय महाधिकार)
जिनभवनों की संख्या सात करोड़ बहत्तर लाख है। प्रत्येक मंदिर में सिंहासनादिक सहित हाथ में चंवर लिये नागयक्ष युगल से युक्त तथा नाना प्रकार के रत्नों से निर्मित जिनप्रतिमाएँ हैं (3/51)। जिनमन्दिरों में देवच्छन्द (गर्भगृह) के भीतर श्रीदेवी, श्रुतदेवी