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अनेकान्त 64/1, जनवरी-मार्च 2011 अनेकान्तवादी बना दिया। जैन शास्त्रकारों ने पृथ्वी, अग्नि, जल एवं वायु में भी जीव तत्त्व की परिकल्पना की और अपनी सदय दृष्टि के कारण इस प्रकार के प्रावधान किए जिससे उनका अवरोध न हो। श्री एच. जी. रॉलिनसन ने जैन आचारांग सूत्र में पृथ्वी, अग्नि, जल एवं वायु कायिक जीवों में जीवन के अस्तित्व के दर्शन किए। अत: विश्वव्यापी जीवों की रक्षा के लिए जैनाचार्यों के मन में कोमल अनुभूतियों का होना आवश्यक था। इसीलिए उन्होंने समस्त जीवों की रक्षा के लिए मंगल उपदेश दिया है। श्री अतीन्द्रनाथ बोस ने सुप्रसिद्ध जर्मन विद्वान् जैकोबी को आधार मानकर यह निष्कर्ष निकाला है कि सर्वप्रथम भगवान् महावीर स्वामी ने ही पेड़-पौधों एवं पशु-पक्षियों के जीवन की सुरक्षा के लिए विशेष आज्ञा प्रसारित की थी।'
भगवान् बुद्ध एवं भगवान् महावीर स्वामी के उपदेशों से प्रभावित होकर तत्कालीन जगत् में एक वैज्ञानिक क्रान्ति का सूत्रपात हुआ और समाज में हिंसापरक अनुष्ठानों एवं मांसाहार को बुरी निगाह से देखा जाने लगा। भारतीय आयुर्वेद एवं चिकित्सालय के विकास ने धर्मानुरागी समाज को मनुष्य जाति के साथ-साथ पशु-पक्षियों के लिए भी औषधालय एवं अस्पतालों को खोलने की प्रेरणा दी। पं. जवाहरलाल नेहरू के अनुसार "ईसा से कब्ल की तीसरी या चौथी सदी में जानवरों के अस्पताल भी थे। वह शायद जैनियों और बौद्धों के मजहबों के असर से बने थे, जिनमें कि अहिंसा पर जोर दिया गया है। बौद्ध एवं जैन धर्म से प्रेरणा ग्रहण कर प्रियदर्शी सम्राट अशोक ने इस प्रकार की गतिविधियों को राजकीय संरक्षण प्रदान किया। धर्मप्रिय सम्राट अशोक ने अपने एक आदेश में कहा है:- 'अगर कोई उनके साथ बुराई करता है, तो उसे भी प्रियदर्शी सम्राट् जहां तक होगा सहन करेंगे। अपने राज्य के वन के निवासियों पर भी प्रियदर्शी सम्राट् की कृपा-दृष्टि है और वह चाहते हैं कि ये लोग ठीक विचार वाले बनें, क्योंकि अगर ऐसा वे न करें तो प्रियदर्शी सम्राट को पश्चात्ताप होगा। क्योंकि परम पवित्र महाराज चाहते हैं कि जीवधारी मात्र की रक्षा हो और उन्हें आत्मसंयम, मन की शांति और आनन्द प्राप्त हो।।।
कलिंग-विजय के उपरान्त पश्चात्ताप के क्षणों में अशोक किसी को भी बंदी रूप में देखना पसन्द नहीं कर सकते थे। अतः लोकोपकार के कार्य में संलग्न उस महान् सम्राट ने स्थान-स्थान पर मनुष्यों एवं पशुओं के अस्पताल खुलवाकर राज्य की नीति में करुणा के धर्म को साकार कर दिया। इस संबन्ध में गिरनार का शिलालेख विशेष रूप से द्रष्टव्य है:- "राजानो सर्वत्र देवानांप्रियस प्रियदसिनो राजो द्वे चिकीछा कता- मनुसचिकीछा च पसुचिकीछा च औसुढानि च यानि मनुसोपगानि च यत यत नास्ति सर्वत्रा हारापितानि च रोपापितानि।' अर्थात् देवानांप्रिय प्रियदर्शी राजा ने दो प्रकार की चिकित्सा की- मनुष्य चिकित्सा और पशु चिकित्सा। मनुष्यों और पशुओं के उपयोग के लिए जहां-जहां औषधि याँ नहीं थीं, वहां सब जगह से लायी गई और बोई गईं।
भगवान् महावीर एवं भगवान् बुद्ध द्वारा प्रतिपादित अहिंसा और करुणा का दर्शन अपनी संवेदनशीलता एवं वैचारिक पृष्ठभूमि के कारण तत्कालीन विदेशी चिंतकों एवं मनीषियों में भी लोकप्रिय हो गया था। सुप्रसिद्ध गणितज्ञ पाइथागोरस जीवहिंसा का प्रबल विरोधी