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उपासकाध्ययन
दान इन पटकोका विधान किया। पद्मनन्दिने अपनी पञ्चविंशतिकाके अन्तर्गत उपासक संस्कारमें सोमदेवके उस श्लोकको ही सम्मिलित कर लिया। और तबसे श्रावकके ये ही षट्कर्म प्रचलित हो गये और पुराने षट् आवश्यकोंको श्रावक भूल हो गये। इसी तरह सोमेदेवके द्वारा निर्दिष्ट अष्ट मूलगुणोंको भी पद्मनन्दिने अपनाया। अभ्य भी अनेक समानताएँ पायी जाती हैं। यथा,
"अणुव्रतानि पञ्चेव त्रिप्रकारं गुणवतम् । शिक्षाव्रतानि चत्वारि गुणाः स्युादशोत्तरे ॥३१४॥"-सो० उ०। "अणुव्रतानि पञ्चैव त्रिप्रकारं गुणवतम् ।
शिक्षाव्रतानि चत्वारि द्वादशेति गृहिवते ॥२४॥"-५० ५०, पृ० १३१ सोमदेव और वीरनन्दि-बोरनन्दिके आचारसार' नामक ग्रन्थपर भी सोमदेवके उपासकाध्ययनका प्रभाव है । उसके अनेक श्लोक सोमदेवसे प्रभावित हैं । यथा,
"माता स्वसा तनूजेति मतिर्ब्रह्म गृहाश्रमे ॥"-सो० उ० । "मातानुजा तनूजेति मस्या ब्रह्मवतं मतम् ॥"-आचा० १.१९॥ "संगे कापालिकात्रेयीचाण्डालशबरादिमिः ।
भाप्लुत्य दण्डवत् सम्यग् जपेन्मन्त्रमुपोषितः ॥"-सो० उ० । "स्पृष्टे कपालिचाण्डालपुष्पावत्यादिके सति । जपेदुपोषितो मन्त्रं प्रागुरप्लुत्याशु दण्डवत् ॥"-प्राचा० २०७०। "सवित्रीव तनूजानामपराधं सधर्मस् ।
दैवप्रमावसंपनं निगूहेद् गुणसंपदा ॥"-सो० उ० । "यद्वत्पुत्रकृतं दोषं यत्नान्माता निगृहति ।
तद्वत् सद्धर्मदोषोपगूहः स्यादुपगृहनम् ॥"-आचा० ३।६१॥ सोमदेव और आशाधर-विक्रमको तेरहवीं शताब्दीके प्रमुख विद्वान् पं० आशाधरने अपने सागार - धर्मामृत और अनगार-धर्मामृतको टोकाओंमें सोमदेवके उपासकाध्ययनसे अनेक श्लोक उद्धृत किये हैं। सागार. धर्मामृतपर सोमदेवके उपासकाध्ययनका बहुत प्रभाव है। उसके दूसरे अध्यायके प्रारम्भमें आशाधरने सोमदेवके मतानुसार आठ मूलगुणोंको बतलाते हुए टोकामें 'उपासकाध्ययनादिशास्त्रानुसारिभिः पूर्वमनुष्ठेयतया
दष्टान' लिखा है। इसका आशय यह है कि उपासकाध्ययन आदि शास्त्रोंका अनुसरण करनेवालोंने इन आठ मूल गुणोंको विधेय माना है। कहना न होगा कि यह उपासकाध्ययन सोमदेवकृत उपासकाध्ययन हो है और उसका अनुसरण करनेवालोंमें एक पद्मनन्दि अवश्य हैं । सागार-धर्मामृत और अनगार -धर्मामृतकी टोकाओंमें आशाधरने सोमदेवके उपासकाध्ययनसे अनेक पद्य भी उद्धृत किये हैं। तथा अन्य प्रकारसे भी उसका अनुसरण किया है।
सोमदेव और यश:कोर्ति-महापण्डित यशःकोतिरचित प्रबोधसार ग्रन्थ भी सोमदेवके उपासका. ध्ययनका ऋणो है । उसके अनेक श्लोक थोड़े-से हेर-फेरके साथ प्रबोधसारके कलेवरको अलंकृत किये हुए हैं। उपासकाध्ययनके टिप्पणोंसे पाठक उन्हें जान सकते हैं।
१.श्लो०७। २. श्लो० २७०। ३. श्लो० २३ । ४. आचारसार माणिकचन्द ग्रन्थमाला बम्बईसे प्रकाशित हुआ है। ५. सागार धर्मामृत भौर अनगार-धर्मामृत भी मा० प्र० बम्बईसे प्रकाशित हुए हैं। किन्तु हमने ___ सूरतसे प्रकाशित सागार-धर्मामृतका उपयोग किया है। ६. पृ० ४, ६, १८, ४०, ४१, ४६, ४७, ७२,। ७. पृ० ६७३ और ६८४ ।