Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 6
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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श्लोक-बातिक
( खून ) चर्म आदि धातु उपधातु, और मलों में भी क्रिया उपजाती है। जहां तक पूछ पहुँच जाती हैं, वहां पर तो घोड़ा पूछ से ही डांस को उड़ा देता है, हां इसके अतिरिक्त शरीर प्रदेश पर कभी मच्छर के बैठ जानेपर घोड़े की सक्रिय आत्मा वहीं चर्म में कप क्रिया पैदा कर मक्खी को उड़ा देता है । स्वयं क्रिया-रहित पदार्थ दूसरों में क्रिया उपजाने का प्रेरक निमित्त नहीं होसकता है। अपने अपने शरीर बराबर परिमाण को धार रहे जीव के हलन, चलन, आदि क्रियाओं का होना प्रत्यक्ष प्रमाण से सिद्ध है।
प्रकृतेषु पंचसु द्रव्येष्वाकाशांतानां त्रयाणां निष्क्रियत्ववचने सामर्थ्याज्जीवपुद्गलो सक्रियौ सूत्रितौ वेदितव्यो।
प्रकरण प्राप्त पांच द्रव्यों में आकाश पर्यन्त तीन द्रव्यों के निष्क्रियपन का कथन करने पर उमास्वामी महाराज ने विना कहे ही सामर्थ्य से जीव और पुद्गल के क्रिया--सहितपन का सूचन कर दिया है, यह समझ लेना चाहिये । गम्यमान पदार्थ को पुनः कण्ठोक्त शब्दों द्वारा कहना व्यर्थ है, अत्यन्त संक्षिप्त शब्दों द्वारा बहुत प्रमेय को कह देने वाले सूत्रकार महाराज का तो यह लक्ष्य रहना ही चाहिये।
ननु पुद्गलाः क्रियावत्तयोपलभ्यमानाः क्रियावंत इति युक्त, जीवस्तु न सक्रियस्तस्य तथानुपलभ्यमानत्वादिति न चोद्य', तस्य निष्क्रियत्वे शरीरे क्रियाहेतुत्वविरोधात् । ततः क्रियावानात्मान्यत्र द्रव्ये क्रियाहेतुत्वात् पुद्गलद्र व्यवदित्यनुमानाज्जीवस्य क्रियावतोपलम्मान तस्य सक्रियत्वमयुक्त।
यहां किसी का प्रश्न है कि क्रियासहितपन करके देखे जा रहे गाड़ी, वायु, बादल, समुद्रजल, आदि पुद्गल क्रियावान हैं, यों जैनों का कहना युक्ति-पूर्ण है किन्तु जीव क्रियावान हैं, यह कहना तो उचित नहीं क्योंकि उस जीव की तिस प्रकार क्रिया-सहितपने करके उपलब्धि नहीं हो रही है। आत्मा सर्व व्यापक है, एक देश से दूसरे देश में नहीं जा सकता है। ग्रन्थकार कहते हैं, कि यह कुचोद्य उठाना ठीक नहीं है, कारण कि उस आत्मा को क्रिया रहित मानने पर शरीर में क्रिया करने के हेतु होरहेपन का विरोध होजायगा। स्वयं दरिद्र मनुष्य दूसरे को धन देकर धनी नहीं बनासकता है। स्पर्शरहित आकाश दूध या पानी को उष्ण नहीं कर सकता है। तिस कारण से सिद्ध हो जाता है कि आत्मा (पक्ष) क्रियावान् है (साध्य), अन्य पुद्गलद्रव्य में क्रिया का हेतु होने से (हेतु), पुद्गल द्रव्य के समान (अन्वयदृष्टान्त) । अर्थात्-जैसे क्रियावान् ही पुद्गल दूसरे पुद्गल में क्रिया को उपजा सकता है, क्रियावान् ऐ जिन गाड़ी के डब्बों में क्रिया कर देता है, इस प्रकार अनुमान से जीव के क्रिया--सहित--पन का उपलम्भ होजाने के कारण उस जोव को क्रिया-सहितपना अभीष्ट करना अयुक्त नहीं है।
कालेन व्यभिचारान हेतुर्गमको वेति चेन्न, कालस्य क्रियाहेतुत्वाभावात् । क्रियानिर्वर्तकत्वं क्रियाहेतुत्वमिह साधनं न पुनः क्रियानिमित्तमात्रत्वं तस्य कालादौ सद्भावामा