Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
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गुणभद्र स्वामी ने सम्यग्दर्शन के विभिन्न भेद-प्रभेद का वर्णन निम्न प्रकार किया है
'श्रद्धानं द्विविधं त्रिधा दशविधं मौढ्याद्यपोढ़ सदा, संवेगादिविवर्धितं भवहरं त्र्यज्ञानशुद्धिप्रदम्। निश्चिन्वन् नव सप्ततत्त्वमचलप्रासादमारोहतां, सोपानं प्रथमं विनेयविदुषामाद्येयमाराधना ॥(10)
. (आत्मानुशासनम्) तत्वार्थश्रद्धानका नाम सम्यग्दर्शन है। वह निसर्गज और अधिगमज के भेद से दो प्रकार का ; औपशमिक, क्षायोपशमिक और क्षायिक के भेद से तीन प्रकारका ; तथा आगे कहे जाने वाले आज्ञासम्यक्त्व आदि के भेद से दस प्रकार का भी है। मूढ़ता आदि (3 मूढ़ता, 8 मद, 6 अनायतन और 8 शंका-कांक्षा आदि) दोषों से रहित होकर संवेग आदि गुणों से वृद्धि को प्राप्त हुआ वह श्रद्धान (सम्यग्दर्शन) निरन्तर संसार का नाशक, कुमति, कुश्रुत एवं विभंग इन तीन मिथ्याज्ञानों की शुद्धि (समीचीनता) का कारण ; तथा जीवाजीवादि सात अथवा इनके साथ पुण्य और पाप को लेकर नौ तत्वों का निश्चय करानेवाला है। वह सम्यग्दर्शन स्थिर मोक्षरूप भवन के ऊपर चढ़ने वाले बुद्धिमान् शिष्यों के लिए प्रथम सीढ़ी के समान है। इसीलिये इसे चार आराधनाओं में प्रथम आराधनास्वरूप कहा जाता है।
आज्ञामार्गसमुद्भवमुपदेशात्सूत्रबीजसंक्षेपात्।
विस्तारार्थाभ्यां भवमवगाढपरमवगाढं च।(11) - वह सम्यग्दर्शन आज्ञासमुद्भव, मार्गसमुद्भव, उपदेशसमुद्भव, सूत्रसमुद्भव, बीजसमुद्भव, संक्षेपसमुद्भव, विस्तारसमुद्भव, अर्थसमुद्भव, अवगाढ और परगावगाढ ; इस प्रकार से दस प्रकार का है। ...
आज्ञासम्यक्त्वमुक्तं यदुतविरूचितं वीतरागाज्ञयैव, त्यक्तग्रन्थप्रपञ्चं शिवममृतपथं श्रद्धन्मोहशान्तेः। मार्गश्रद्धानमाहुः पुरूषवरपुराणोपदेशोपजाता, या सज्ञानागमाब्धि प्रसृतिभिरूपदेशादिसदेशि दृष्टिः। (12)
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