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दशम अध्याय
ने कहा- "अपने पेट को पशुओंों की कब्र मत बनाओ । *
ईसाई धर्म की मान्य पुस्तक इंजील में भी हिंसा के विरोध में बहुत सुन्दर कहा है । वहां लिखा है- Thou shalt not killअर्थात् तू किसी जीव का घात मत कर। इन उद्धरणों से यह स्पष्ट हो जाता है कि संसार में कोई ऐसा धर्म या मत नहीं है, जिसके पवित्र धर्म ग्रन्थों में दया धर्म की शिक्षा न दी गई हो, थोर जीवहिंसा का निषेध न किया गया हो । एक फारसी के कवि तो यहां तक कहते हैंहज़ार गंजे कनायत, हज़ार गंजे करम । हजार इतायत शहा, हजार वेदारी | हजार सिजदा व हर सिजदा रा हजार नमाज । कबूल नेस्त; ग़र तायरे बयाजारी
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प्रर्थात्- चाहे मनुष्य धैर्य में उच्च श्रेणी का हो, हज़ार खजाने प्रतिदिन दान करता हो, हज़ारों रातें केवल भक्ति में व्यतीत करता हो, हज़ारों सिजदे ( नमस्कार ) करें, और एक-एक सिजदे के साथ हजार-हज़ार नमाज पढ़, तो यह सब पुण्य क्रियाएं व्यर्थ ही होंगी, यदि वह पुरुष किसी पक्षी को कष्ट देने वाला होगा ।
पशु बलि का निषेध करते हुए ईसाई मत के एक फकीर हिब्रू ने लिखा है --
"Neither by the blood of goats or calves but by his own blood he entered at once into the holy place having obtained eternal redemption. For it is not श्रमण वर्ष ९ अंक २
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