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प्रश्नों के उत्तर
... ३७४ ... . अर्थात्-हमारे वस्त्र को यदि रक्त का स्पर्श हो जाय तो हम उसे
अपवित्र मानते हैं, किन्तु जो मनुष्य रक्त का सेवन करते हैं, उनका चित्त निर्मल कसे रह सकता है ? इसके अलावा, ग्रन्थसाहिब में और भी प्रमाण मिलते हैं। जैसे किभंग माछली,सरापान, जो-जो प्राणी खाय ।
खाय। . . . धर्म नियस जितने किए, सभी रसातल जाय । .. ... . .... इन झटका उन विसमिल कीनी, दया दुहूं ते भोगी ।।
कहत कबीर सुनो भाई साधो !, प्रांग दोहों घर लागी। सच्चम करके चौका पाया, जीव मार के चढ़ाया मांस । जिस रसोई चढ़ाया मांस, दयाधर्म का होया नासः ।।
मुस्लिम धर्म पुस्तकों में भी जीवदया की सराहना प्राप्त होती है। शेखसादी कहते हैं कि एक बार शेख शिबली एक वनिए की दुकान . ... से प्राटा मोल लेकर घर गए, उन्होंने देखा कि आटे के अन्दर एक -
कीड़ी बड़ी व्याकुलता से चारों ओर दौड़ रही है। उन्होंने रात को . सोना हराम समझा। उसी समय उस वनिए की दुकान पर जा करा:
उन्होंने उस कीड़ी को छोड़ दिया और कहा, कि मेरे कारण इस बेचारी चिउण्टी का घर नहीं छूटनी चाहिए। इसके अतिरिक्त हज़रत. .. महम्मद का कथन है कि जहां पशु मरते हों, वहां निमाज़ नहीं पढ़नी. चाहिए.। मुस्लमानों को आज्ञा है कि जिस दिन से हज्ज करने का.. विचार वने उस दिन से लेकर मक्का में पहुंचने तक किसी जीव की हत्या न करो! यहां तक कि जूं को भी दूर हटा दो, मारो मत। ..
मांसाहार का बहुत कड़े शब्दों में विरोध करते हुए हजरत अली