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एक छोटे बच्चे को पहली बार चर्च में लाया गया। उसने लोगों के चेहरे देखे-लटके हुए उदास, गंभीर। सारा माहौल कुछ ऐसा जान पड़ा जैसे कि कोई मर गया हो। घर लौट कर मां ने पूछा, तुम्हें कैसा लगा? उसने कहा : मुझे सच कह देना चाहिए। मुझे लगा जैसे ईश्वर को वहां कुछ बुरा लग रहा हो।
मां ने कहा. तुम्हारा मतलब क्या है?
वह बोला : ऐसे लटके चेहरे देख कर तो ईश्वर को ऊब जाना चाहिए। और मम्मी क्या इसी प्रकार के लोग हरेक रविवार को आते हैं?
ही, निःसंदेह, वे ही लोग। इनमें से कुछ ऐसे हैं जो वहा चालीस-पचास सालों से आर रहे हैं।
बच्चा अत्यधिक उदास हो गया, उसने कहा : ईश्वर के बारे में सोचो, हर रविवार को वे ही उदास लोग, वे ही चेहरे, उसे तो ऊब कर मरने की हालत में पहंच जाना चाहिए।
तुम परमात्मा तक हंसी के माध्यम से पहुंचते हो। मैं तुम्हें हंसी सिखाता हूं। तुम परमात्मा तक नाचते हुए, गाते हुए, हर्षित, प्रफुल्लित, उत्सव मनाते हुए पहुंचते हो। हंसना सीखो।
और जब तुम हंस रहे हो तो देखो तुम्हारे भीतर क्या घट रहा है। वरना तुम इसके सारे सौंदर्य से चूक जाओगे। जब तुम हंस रहे होते हो तो देखो' कैसे अचानक अहंकार यहां नहीं होता। देखो किस भांति मन एक क्षण को ठहर गया होता है। एक महीन से क्षण में मन वहां नहीं होता-वहां कोई विचार नहीं होता। जब तुम गहराई से हंसते हो तो वहा कोई विचार नहीं बचता।. :
हंसी ध्यानमयी है... और औषधियक्त है। भौतिक शरीर के लिए यह औषधिमय है; आध्यात्मिक शरीर के लिए ध्यानमय।
मैं चाहूंगा कि मुल्ला नसरुद्दीन किसी ग्रुप को आरंभ करे, लेकिन यह मुश्किल प्रतीत होता है। वह दुष्कर व्यक्ति है।
प्रश्न:
प्यारे ओशो, आपके दिव्य संगीत ने मेरे आस्तित्व के किसी गहनतर तल को छ लिया है। जब मैं पहली बार आया था मैं संन्यास के लिए पूरी तरह तैयार था। मेरा संन्यास आपका आशीष था या मेरा सत्याग्रह, यह बात मुझे साफ पता नहीं है। आप कहते है, आओ मेरा अनुसरण करो। लेकिन आपका अनुसरण कैसे हो, क्योंकि में तो आपको जानता ही नहीं? कभी-कभी आपकी सुवास महसूस करता हैं और कभी-कभी वह खो जाती है।