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इसलिए जब कभी मैं कहता हूं 'पूरब में हम तो मेरा अभिप्राय है सभी धार्मिक लोग, चाहे उनका जन्म कहीं हुआ हो, चाहे उनका पालन-पोषण कहीं भी हुआ हो। वे सारे संसार में फैले हु हैं। पूरब पूरब सारे संसार में फैला हुआ है, जैसे पश्चिम सारे संसार में फैला हुआ है। जब कभी कोई भारतीय अपनी वैज्ञानिक खोजों के लिए नोबल पुरस्कार पाता है, तो उसके पास पश्चिमी मन है वह पूरब का भाग नहीं रहा है, अब वह पूर्वीय परंपरा का हिस्सा नहीं रहा। उसने अपना घर बदल लिया है, उसने अपना पता बदल लिया है। वह अब अरस्तु के पीछे खड़े लोगों की पंक्ति में सम्मिलित हो गया है।
पूरब तुम्हारे भीतर है, हम इसको पूरब कहते हैं, क्योंकि पूरब और कुछ नहीं बल्कि उदित होता हुआ सूर्य-सजगता, चेतना, बोध है।
इसलिए जब कभी मैं कहता हूं 'पूरब में हम' तो कभी दिग्भ्रमित मत हो । मेरा अभिप्राय उन सभी देशों से नहीं है जो पूरब में हैं, जरा भी नहीं। मेरा अभिप्राय है वह चेतना जो पूर्वीय है। जब मैं भारत शब्द का प्रयोग करता हूं तो मेरा अभिप्राय भारत नहीं होता है। मेरे लिए यह एक बड़ी चीज है, यह दूसरे देशों की भांति मानचित्र में छपा केवल भौगोलिक भूखंड भर नहीं है। यह मात्र उस विराट ऊर्जा का प्रतीक है, जिसको भारतवर्ष ने अंतस के अनुसंधान में लगाया है। इसलिए तुम्हारा जन्म चाहे कहीं हुआ हो यदि तुम परमात्मा की ओर आने लगते हो तो तुम भारतीय बन जाते हो। अचानक भारत के लिए तुम्हारी तीर्थयात्रा आरंभ हो जाती है। तुम भारत आ सकते हो या तुम भारत नहीं आ सकते हो यह बात अर्थपूर्ण नहीं है। लेकिन तुमने अपनी तीर्थयात्रा आरंभ कर दी है। और जिस दिन तुम बुद्ध, जिन महावीर उपनिषद के दृष्टाओं, वेदों के अचानक तुम तकनीकविद मन, तार्किक मन का
समाधि उपलब्ध कर लेते हो अचानक तुम गौतम ऋषियों, कृष्ण और पतंजलि का भाग हो जाते हो। हिस्सा नहीं रहते हो, तुम तर्कातीत हो गए हो।
दूसरा प्रश्न:
जीसस क्राइस्ट, बुद्ध, महावीर, लाओत्सु, इन सभी संबुद्ध लोगों के बारे में ज्ञात है कि वे सारे संसार में उपदेश देन गये थे आप ऐसा नहीं कर रहे, इसका क्या कारण है?
मैं
भी वही कर रहा हूं किंतु थोड़े विपरीत ढंग से। मैं सारे संसार को अपने चारों ओर आने दे रहा
हूं। यह मेरा ढंग है। बुद्ध ने अपना कार्य किया, मैं अपना कार्य कर रहा हूं।