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रहता-असंभव है। वे तुमको पागल होने ही न देंगे। तुम इतनी पगलाई अवस्था में रहते हो और इससे इतने लयबद्ध हो जाते हो कि तुम जान ही नहीं सकते कि तुम पागल हो। पश्चिम में संयुक्त परिवार मिट चुका है। बच्चे भी जिस ढंग से वे पूर्व में होते हैं, उस भांति नहीं होते। वहां अधिक से अधिक एक या दो बच्चे होते हैं। बहत अंतराल बच जाता है। पुराना सारा उलझाव अब वहां नहीं रहा। लोग और-और समृदध, धनी होते जा रहे हैं, वहां कम से कम कार्य रह गया है और अधिक से अधिक विश्राम उपलब्ध हो रहा है, और वे नहीं जानते कि इस विश्राम के साथ क्या किया जाए। वे विक्षिप्त हो जाते हैं। जरा अपने बारे में सोचो, यदि तुम्हारे पास करने को कुछ न हो, न ही बच्चे हों जिनके लिए तुमको कुछ करना हो, तो क्या होगा?
एक बार मैंने मुल्ला नसरुद्दीन से पूछा, क्या तुम अभी तक उसी कंपनी के लिए काम कर रहे हो? उसने कहा : हां, वही कंपनी है. पत्नी और तेरह बच्चे!
तुम्हारे पास पालने के लिए एक परिवार है, सुबह से सांझ तक सारा जीवन कठोर परिश्रम करना है, तुम सांझ थके-हारे घर आते हो और सो जाते हो, और सुबह फिर तुमको इसी धंधे में लग जाना है, तो तुमको विक्षिप्त होने का मौका कहां मिलेगा? तुमको मनोचिकित्सक के पास जाने का समय कब मिलेगा? पूरब में तो मनोचिकित्सक होते ही नहीं हैं। यहां पर बच्चे ही एकमात्र मनोचिकित्सक हैं।
विक्षिप्त लोगों में अपनी विक्षिप्तता के कारण अपने चारों ओर व्यवस्ता में उलझने का माहौल पैदा करने की मनोवृत्ति होती है। ऐसा होना तो नहीं चाहिए, क्योंकि ऐसा करके वे विक्षिप्तता का सामना करने से बच जाते हैं। उनको विक्षिप्तता के तथ्य का सामना करना चाहिए और उनको इसके पार जाना चाहिए। संबुद्ध व्यक्ति को बच्चों की कोई आवश्यकता नहीं होती है। उसने अपने आपको परम जन्म दे दिया है। अब: किसी और को जन्म देने की आवश्यकता नहीं रही। वह स्वयं अपने आप के लिए माता और पिता बन गया है। अपने स्वयं के लिए गर्भ बन चुका है वह, और उसका पुनर्जन्म हुआ है।
लेकिन इन दोनों के मध्य में, जब विक्षिप्तता वहां नहीं होती, तुम ध्यान करते हो, तुम थोड़े से सजग, बोधपूर्ण हो जाते हो। तुम्हारा जीवन बस अंधकार का नहीं रहता। यह प्रकाश उतना तीव्र नहीं है जैसा कि यह उस समय होता है जब कोई बुद्ध बन जाता है, लेकिन फिर भी मोमबत्ती की एक धीमी रोशनी उपलब्ध हो रही है। यही समय ठीक है-संक्रमण काल का समय, जब तुम बस सीमा रेखा पर हो, संसार से बाहर निकल रहे हो, दूसरे संसार में जा रहे हो, बच्चे पैदा करने का यही उचित समय है, क्योंकि तब तुम अपनी सजगता का कुछ अंश अपने बच्चों को दे पाने में समर्थ हो जाओगे। अन्यथा उनको तुम भेंट के रूप में क्या दोगे? तुम उनको अपनी विक्षिप्तता दे दोगे।
मैंने सुना है, अठारह बच्चों को लेकर एक व्यक्ति पशु-प्रदर्शनी देखना गया। इस प्रदर्शनी में एक विशिष्ट बैल था, जिसकी कीमत आठ हजार रुपये थी। और उसको केवल देखने का उडाल्क पांच