Book Title: Patanjali Yoga Sutra Part 05
Author(s): Osho
Publisher: Unknown

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Page 462
________________ और प्रत्येक भावना के साथ यही किया जाना चाहिए। धीरे- धीरे तुम यह अनुभव करोगे कि यदि तुम क्रोधित होने का प्रयास करो तो तुम भावनाओं की एक श्रृंखला से होकर गुजरोगे। पहले तुम क्रोधित होओगे, फिर अचानक तुम चीखना-चिल्लाना आरंभ कर दोगे, शून्यता में से आएगा यह सब। क्रोध निकल गया, शांत हो गया-तुम्हारे अस्तित्व की एक और परत, उदासी का एक और बोझ छु लिया गया है। प्रत्येक क्रोध के पीछे उदासी होती है, क्योंकि जब कभी भी तुम अपने क्रोध को रोकते हो तुम उदास हो जाते हो। इसलिए क्रोध की प्रत्येक परत के बाद उदासी की एक परत होती है। जब क्रोध निकल जाता है, तो तुम उदासी अनुभव करोगे, इस उदासी को निकाल फेंको-तुम रोना, सुबकना आरंभ कर दोगे। रोओ, सुबको, आंसुओ को बहने दो। उनमें कुछ गलत नहीं है। संसार की सर्वाधिक सुंदर चीजों में से एक हैं आंसू इतने विश्रांतिदायक, इतने शांतिदायी। और जब आंसू जा चुके हैं, अचानक तुम एक और भावना को देखोगे, तुम्हारे भीतर कहीं गहराई में फैलती हुई एक मुस्कुराहट, क्योंकि जब उदासी निकल जाती है, व्यक्ति एक बहुत स्निग्ध, कोमल, नाजुक, प्रसन्नता का अनुभव करने लगता है। यह आएगी, यह उभरेगी और यह तुम्हारे सारे अस्तित्व पर परिव्याप्त हो जाएगी। और तब तुम देखोगे कि पहली बार तुम हंस रहे हो-पेट की हंसी-स्वामी सरदार गुरदयाल सिंह की भांति एक पेट की हंसी। उनसे सीख लो। वे इस आश्रम में हमारे जोरबा दि ग्रीक हैं। उनसे सीखो कि हंसा कैसे जाए। जब तक तुम्हारे पेट से तरंगें न उठे तुम हंस नहीं रहे हो। लोग सिर से हंसते है; उनको पेट से हंसना चाहिए। उदासी की निर्जरा हो जाने के बाद तुम हंसी को, करीब-करीब पगला देने वाली हंसी, एक विक्षिप्त सी हंसी को उठता हुआ देखोगे। तुम ऐसे हो जाते हो जैसे कि तुम आविष्ट हो गए हो और तुम जोर से हंसते हो। और जब यह हंसी विदा हो चुकी है तुम हलका, निर्भार, उड़ता हुआ अनुभव करोगे। पहले यह तुम्हारे स्वप्नों में प्रकट होगा। और धीरे- धीरे तुम्हारी जागी हुई अवस्था में भी तुम अनुभव करोगे कि तुम अब चल नहीं रहे हों-तुम उड़ रहे हो। हो, चेस्टरटन सही कहता है : फरिश्ते उड़ते हैं, क्योंकि वे अपने आप को हलके ढंग से लेते हैं। स्वयं को हलके ढंग से लो। अहंकार स्वयं को बहुत गंभीरता से लेता है। अब एक समस्या है; धर्म में अहंकारी लोग अत्यधिक उत्सुक हो जाते हैं। और वास्तव में वे धार्मिक हो पाने के लिए करीब-करीब असमर्थ हैं। केवल वे लोग जो गैर-गंभीर हैं धार्मिक हो सकते हैं, लेकिन वे धर्म में कोई बह हयामिक हा सकत ह, लाकन व धर्म में कोई बहत अधिक उत्सक नहीं होते। इसलिए एक विरोधाभास, एक समस्या संसार में बनी रहती है। गंभीर लोग, गा लोग, उदास लोगअपने सिरों में अटके हुए आशंकित लोग, वे धर्म में बहुत उत्सुक हो जाते हैं, क्योंकि धर्म उनके अहंकार के लिए सबसे बड़ा लक्ष्य दे देता है। वे दूसरे संसार का कुछ कर रहे हैं, और सारा संसार बस इसी संसार का कार्य कर रहा है-वे भौतिकवादी हैं, निंदनीय हैं। प्रत्येक व्यक्ति नरक जा रहा है; केवल ये धार्मिक लोग स्वर्ग जा रहे हैं। अपने अंहकारों में वे लोग बहुत-बहुत ताकतवर अनुभव करते हैं।

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