Book Title: Patanjali Yoga Sutra Part 05
Author(s): Osho
Publisher: Unknown

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Page 461
________________ है, वे जी भर कर जीए हैं, उन्होंने सबलता और सघनता के साथ मानवीय जीवन को आत्यंतिक रूप से जीया है और फिर धीरे-धीरे वे इस समझ पर पहुंचे हैं। यह केवल जीवन ही है जो समझ लेकर आता है। तुम क्रोधित होना चाहते थे, किंतु सभी शास्त्र इसके विरोध में हैं, इसलिए तुमने क्रोध कभी न होने दिया अब वह क्रोध इकट्ठा होता चला जाता है- परत दर परत और तुम उस बोझ को ढोते फिर रहे हो, इसके नीचे करीब-करीब दबे जा रहे हो यही कारण है कि तुम इतना भारीपन महसूस करते हो। इसे बाहर फेंको, छोड़ दो इसे! किसी खाली कमरे में चले जाओ और क्रोधित हो जाओ, और वास्तव में क्रोधित हो जाओ-तकिए को पीटो, और दीवालों पर क्रोधित हो जाओ, और दीवालों से बातें करो और उन बातों को कहो जिनको तुम सदैव कहना चाहते थे किंतु तुम कह नहीं पाए थे। उत्तेजना में आ जाओ, क्रोधाविष्ट हो जाओ और तुम एक सुंदर अनुभव पर पहुंचोंगे। इस विस्फोट के बाद, इस तूफान के बाद, एक मौन तुम पर आएगा, एक मौन तुम पर व्याप्त हो जाएगा, एक ऐसा मौन जिसको तुमने पहले कभी नहीं जाना था, जो तुम्हें निर्धार कर देता है। अचानक तुम हलका अनुभव करते हो। यह प्रश्न विद्या ने पूछा है। मैं देख सकता हूं कि वह हलकापन अनुभव कर रही है। इसमें और ग जाओ, जिससे न केवल स्वप्नों में बल्कि तुम वास्तव में उड़ सको। यदि तुम अपने अतीत को नहीं ढो रहे हो, तो तुम्हारे पास ऐसा हलकापन होगा पंख की भांति हलकापन। तुम जीओगे, लेकिन तुम पृथ्वी को स्पर्श नहीं करोगे। तुम जीते हो, लेकिन तुम पृथ्वी पर कदमों के कोई निशान नहीं छोड़ते हो। तुम जीते हो, किंतु तुमसे किसी को एक खरोंच तक नहीं लगती, और तुम्हारा जीवन एक प्रसाद से घिरा हुआ होता है, तुम्हारा अस्तित्व एक आभा, एक दीप्ति होता है। केवल ऐसा नहीं है कि तुम हलके हो जाओगे, बल्कि जो भी तुम्हारे संपर्क में आएगा वह अचानक किसी बहुत सुंदर, बहुत प्रसादपूर्ण अनुभूति से भर जाएगा। तुम्हारे चारों और पुष्पों की वर्षा होगी, और तुममें एक ऐसी सुगंध होगी जो इस पृथ्वी की नहीं होगी। लेकिन यह केवल तब अनुभव होता है जब तुम निर्धार हो जाते हो । इस निर्धार होने को महावीर ने निर्जरा कहा है- सभी कुछ छोड़ देना। लेकिन छोड़ा कैसे जाए? तुम्हें सिखाया गया है- क्रोधित मत होओ। मैं भी तुम्हें क्रोधित न होना सिखाता हूं लेकिन मैं तुमसे क्रोध न करने को नहीं कहता हूं। मैं कहता हूं क्रोधित होओ। किसी के प्रति किसी पर क्रोध करने की कोई आवश्यकता नहीं है, उससे जटिलता उत्पन्न होती है बस शून्यता में क्रोधित हो जाओ। नदी के किनारे पर चले जाओ, जहां पर कोई नहीं हो, और बस क्रोधित हो जाओ, और तुम जो कुछ भी करना चाहो कर लो। क्रोध का जम कर रेचन करने के बाद तुम रेत पर गिर पड़ोगे, और तुम देखोगे कि तुम उड़ रहे हो। एक पल के लिए अतीत खो गया है।

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