________________
यही सब कछ तो धर्म है प्रसन्न बने रहो, और किसी व्यक्ति के लिए अप्रसन्न हो जाने के लिए कोई परिस्थिति मत निर्मित करो। यदि तुम सहायता कर सकी, तो दूसरों को प्रसन्न करो। यदि तुम ऐसा नहीं कर सकते, तो कम से कम अपने आप को प्रसन्न कर लो।
प्रश्न:
मैं स्वप्न देखा करती हूं, कि मैं उड़ रही हूं, क्या हो रहा है?
जा.के. चेस्टरटन ने कहा है फरिश्ते उड़ते हैं, क्योंकि वे अपने आप को हलके ढग से लिया करते
हैं। तुम्हें यही हो रहा होगा, अवश्य ही तुम फरिश्ता बनने जा रही हो। होने दो इसको। तुम्हें जितना हलकापन अनुभव होता है, जितनी प्रसन्नता तुमको अनुभव होती है, गुरुत्वाकर्षण बल का खिंचाव उतना ही कम हो जाता है। गुरुत्वाकर्षण बल तुम्हें कब बना देता है। भारीपन पाप है। भारी होने का अभिप्राय केवल इतना ही है कि तुम अनजीए अनुभवों, अधूरे अनुभवों से भरे हुए हो; कि -तुम बहुत अनकिए कृत्यों, कचरे से भरे हुए हो। तुम किसी स्त्री से प्रेम करना चाहते थे, लेकिन यह कठिन था, क्योंकि महात्मा गांधी इसके विरोध में हैं। यह मुश्किल है, क्योंकि विवेकानंद इसके विरोध में हैं। यह कठिन है, क्योंकि सारे महान ऋषि और महात्मा ब्रह्मचर्य, काम दमन की शिक्षा दिए चले जाते हैं। तुम प्रेम करना चाहते थे, लेकिन सभी साधु-संत इसके विरोध में थे, अत: तुमने किसी भी प्रकार से स्वयं को नियंत्रण में कर लिया। अब यह तुम पर एक कबाड़ की भांति लदा हुआ है। यदि तुम मुझसे पूछो तो मैं कहूंगा कि तुमको प्रेम कर लेना चाहिए था। अब भी कुछ खो नहीं गया है, तुमको प्रेम करना चाहिए, इसे पूरा कर लो। मैं जानता हूं कि मुनि और महात्मा सही हैं, लेकिन मैं यह नहीं कहता कि तुम गलत हो।
और इस विरोधाभास को मैं तुम्हें समझाता हूं। मुनि और महात्मागण सही हैं, किंतु यह समझ उनको तब उपलब्ध हुई जब उन्होंने खूब प्रेम कर लिया, उसके बाद उपलब्ध हुई जब वे जी लिए, जब उन्होंने वह. सभी कुछ समझ लिया जो प्रेम में निहित है। तब वे इस समझ पर पहुंचे हैं और ब्रह्मचर्य फलित हआ है। यह प्रेम के विरोध में नहीं है, यह माध्यम प्रेम ही है जिससे ब्रह्मचर्य फलित होता है। अब तुम पुस्तकों को, शास्त्रों को पढ़ रहे हो, और शास्त्रों के द्वारा तुमको इस प्रकार के खयाल मिलते रहते हैं। ये खयाल तुमको पंगु कर देते हैं। अपने आप में वे खयाल गलत नहीं हैं, किंतु तुम पुस्तकों से उनको ग्रहण कर लेते हो, और वे ऋषिगण उन पर अपने स्वयं के जीवन के माध्यम से पहुंचे हैं। जरा इतिहास में, प्राचीन पुराणों में वापस लौटो और अपने ऋषियों को देखो, उन्होंने पर्याप्त प्रेम किया