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पुन: नवीनीकृत करता चला जाता है। इसीलिए यह बूढ़े लोगों को दूर ले जाता है और छोटे बच्चे संसार को वापस कर देता है। यह बूढ़े लोगों को छोटे बच्चों में बदल देता है।
अस्तित्व पृथ्वी की जनसंख्या में नये लोगों को सम्मिलित किए चला जाता है-जब कभी यह देखता है कि एक व्यक्ति पूरी तरह से अवरुद्ध हो चुका है-अब वहां न कोई प्रवाह है, न कोई रस है, और यह व्यक्ति बस सिकड़ रहा है और अनावश्यक रूप से पृथ्वी पर एक बोझ हआ जा रहा है तब जीवन उससे वापस ले लिया जाता है। वह व्यक्ति नष्ट हो जाता है, अस्तित्व में वापस चला जाता है। मिट्टी मिट्टी में मिल जाती है, आकाश आकाश में समा जाता है, वाय वायु से मिल जाती है, अग्नि अग्नि में, जल जल में मिल जाता है। फिर उस मिट्टी में से, उस जल और अग्नि में से एक नये बच्चे का जन्म हो जाता है प्रवाहमान, युवा, ताजगी भरा, पुन: जीने और नृत्य करने को तैयार। ठीक उसी भांति जैसे वृक्ष पर पुष्प आते हैं, ठीक उसी प्रकार से जैसे कि वृक्ष पुष्पित होता है, यह पृथ्वी बच्चे निर्मित करती है, नये बच्चों का सृजन करती चली जाती है।
यदि तुम वास्तव में प्रसन्न रहना चाहते हो तो तुमको युवा, जीवंत, रोने, हंसने, सभी आयामों के लिए उपलब्ध, प्रत्येक दिशा में प्रवाहित, प्रवाहमान रहना पड़ेगा। तभी तुम प्रसन्न बने रहोगे। लेकिन याद रखो, तुमको कोई सहानुभुति नहीं मिलेगी। लोग तुमको पत्थर मार सकते हैं, लेकिन यह मूल्य है। लोग सोच सकते हैं कि तुम अधार्मिक हो, वे तुम्हारी निंदा कर सकते हैं, वे तुमको गालियां दे सकते हैं, किंतु इसके बारे में चिंता मत करो। इसका जरा भी महत्व नहीं है। वह एक मात्र चीज जिसका महत्व हैवह है तुम्हारी प्रसन्नता।
और तुमको अनेक चीजों को अनकिया भी करना पड़ेगा, केवल तभी तम प्रसन्न हो सकते हो। समाज के द्वारा जो कुछ भी किया जा चुका है उसको अनकिया करना पड़ता है। जहां कहीं पर तुम अटके हो-तुम हंसने जा रहे हो और तुम्हारे पिता ने तुमको क्रोध से देखा और कहा, रुक जाओ-तुमको पुन: वहीं से आरंभ करना पड़ेगा। अपने पिता से कह दो, कृपया शांत रहिए, अब मैं पुन: हंसने जा रहा हूं। तुम्हारे सिर के भीतर कहीं पर अब भी तुम्हारे पिता तुमको पकड़े हए हैं. रुक जाओ! क्या तुमने कभी देखा है? यदि तुम गहराई से ध्यान करते हो तो तुम अपने भीतर अपने माता-पिता की आवाज सुन लोगे। तुम रोने वाले थे और मां ने तुमको रोक दिया, और निःसंदेह तुम असहाय थे और जीवित रह पाने के लिए तुमको समझौते करने पड़ते थे। और कोई दूसरा उपाय था भी नहीं। तुमको इन लोगों पर निर्भर रहना पड़ता था, और उनकी अपनी शर्ते थीं, वरना तुमको उन्होंने दूध नहीं दिया होता, उन्होंने तुमको भोजन नहीं दिया होता, उन्होंने तुमको कोई सहारा नहीं दिया होता। और एक छोटा बच्चा बिना किसी सहारे के कैसे जी सकता है? उसको समझौता करना पड़ता है। वह कहता है, ठीक है। बस जीवित रहने के लिए जो कुछ भी आप कहते हैं मैं वही करूंगा। इसलिए धीरे-धीरे वह नकली बन जाता है। धीरे-धीरे वह अपने स्वयं के विरोध में चला जाता है। वह हंसना चाहता था