________________
है, यदि फिल्म की रील को कुछ धीमा चला दिया जाए तो तुम देख लोगे कि प्रत्येक दृश्य असातत्य में हैं - कवांटा। एक चित्र चला जाता है दूसरा आता है, दूसरा चला जाता है एक और आ जाता है, लेकिन दो चित्रों के मध्य में एक अंतराल है। उस अंतराल में तुम असली पर्दे को देख सकते हो। जब चित्र–श्रृंखला बहुत तीव्र गति में हो तो उसमें गति का भ्रम उत्पन्न हो जाता है। निसंदेह चल - चित्र कोई चलता हुआ चित्र नहीं है, यह उतना ही स्थिर फोटोग्राफ है जितना कोई और फोटो होता है। गतिशीलता भ्रामक है, क्योंकि वे स्थिर फोटोग्राफ एक-दूसरे के पीछे बहुत तेजी से दौड़ रहे हैं, उनके मध्य का अंतराल बहुत छोटा है, जिससे कि तुम अंतराल नहीं देख सकते हो। इसलिए सभी कुछ ऐसा दिखाई पड़ता है जैसे कि यह सातत्य में है।
:
मैं अपना हाथ हिलाता हूं इस हाथ को चलचित्र में चलता हुआ दिखाने के लिए, हाथ की गति शीलता की प्रत्येक अवस्था के हजारों चित्र उतारने पड़ेंगे - इस बिंदु से इस बिंदु तक, इस बिंदु से इस बिंदु तक, इस बिंदु से इस बिंदु तक हाथ की एक साधारण सी गति हजारों छोटे-छोटे स्थिर चित्रों में बंट जाएगी। फिर वे सभी चित्र तेजी से गति करेंगे - : हाथ हिलता हुआ प्रतीत होगा। यह एक भ्रम है। गहरे में दो चित्रों के मध्य में पर्दा सफेद, रिक्त है।
पतंजलि कहते हैं : यह विश्व और कुछ नहीं वरन एक चल - चित्र है, एक प्रक्षेपण है। लेकिन यह समझ केवल तब उठती है जब व्यक्ति समझ के अंतिम सोपान को उपलब्ध कर लेता है। जब वह देखता है कि सभी गुण ठहर गए हैं, कुछ भी चल नहीं रहा है, तभी अचानक वह इस बात के प्रति सजग हो जाता है कि यह सारी कहानी आमक गति तीव्र गति के द्वारा निर्मित की गई थी। यही है जो आधुनिक भौतिक वितान के साथ घटित हो रहा है।
जब वे परमाणु पर पहुंचे, तो पहले उन्होंने कहा, अब यह परम है; इसको और अधिक विभाजित नहीं किया जा सकता है। फिर उन्होंने परमाणु को भी विभाजित कर दिया। फिर वे इलेक्ट्रॉनों पर पहुंचे, अब इसे और अधिक विभाजित नहीं किया जा सकता। अब उन्होंने उसको भी विभाजित कर दिया है। अब वे ना कुछपन, शून्यता पर पहुंच गए हैं; अब वे नहीं जानते कि क्या मिल गया है। विभाजन, विभाजन, विभाजन और आधुनिक भौतिक विज्ञान में एक ऐसा बिंदु आ गया है जहां पदार्थ पूरी तरह से मिट गया है। आधुनिक भौतिक विज्ञान पदार्थ के माध्यम से पहुंच गया है, और पतंजलि तथा योगी लोग उसी बिंदु पर चेतना के माध्यम से पहुंच गए हैं। भौतिक विज्ञान इस अंतिम से पहले सूत्र तक पहुंच चुकी है। अंतिम से पहले के इस सूत्र तक वैज्ञानिक की समझ, पहुंच और गति संभव हो सकती है। अंतिम सूत्र वैज्ञानिक के लिए संभव नहीं है, क्योंकि अंतिम सूत्र तभी उपलब्ध किया जा सकता है जब तुम चेतना के माध्यम से जाओ, पदार्थ के माध्यम से नहीं, विषयों के माध्यम से नहीं, विषयी के माध्यम से सीधे ही जाओ ।
पुरुषार्थशून्याना गुणानां प्रतिप्रसवः कैवल्य स्वरूपप्रतिष्ठा वा चितिशक्तिरिति ।