Book Title: Patanjali Yoga Sutra Part 05
Author(s): Osho
Publisher: Unknown

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Page 448
________________ बाहर की मक्का वास्तविक मक्का नहीं है। असली मक्का तुम्हारे भीतर है। तुम परमात्मा का मंदिर हो। तुम परम का आश्रय हो। इसलिए प्रश्न यह नहीं है कि सत्य को कहां पाया जाए, प्रश्न है, तुमने इसे खो कैसे दिया? प्रश्न यह नहीं है कि कहां जाना है; तुम पहले से ही वहां हों-जाना बंद करो । सारे रास्ते छोड़ दो। सभी रास्ते आकांक्षाओं के, वासनाओं के विस्तार के, अभिलाषाओं के प्रक्षेपण के हैं-कहीं और जाना है, कहीं और जाना है, सदैव कहीं और, यहां कभी नहीं । खोजी, सारे रास्ते छोड़ दो, क्योंकि सभी रास्ते वहां ले जाते हैं और वह यहां है। पुरुषार्थशून्यानां गुणानां प्रतिप्रसवः कैवल्य स्वरूपप्रतिष्ठा वा चितिशक्तिरिति । आज इतना ही। प्रवचन 100- मैं प्रेम के पक्ष में हूं प्रश्न- सार: 1- प्रत्येक मनुष्य समस्याओं से भरा हुआ और अप्रसन्न क्यों है? 2- मैं स्वप्न देखा करती हूं कि मैं उड़ रही हूं क्या हो रहा है? 3- आपके प्रवचनोपरांत उमंग, लेकिन दर्शन के बाद हताशा ऐसा क्यों? 4- पूरब में एक से प्रेम संबंध, पश्चिम में अनेक से, प्रेम पर आपकी दृष्टि क्या है? पहला प्रश्न: प्रत्येक मनुष्य समस्याओं से भरा हुआ और अप्रसन्न क्यों है?

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