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स्वभाव परितृप्त
कर कि व्यक्ति अपने सच्चे स्वभाव को उपलब्ध कर लेता है-पतंजलि रुक जाते हैं। लक्ष्य यही है. अपने स्वभाव को जानना और इसमें रहना-क्योंकि जब तक हम अपने स्वभावों तक नहीं पहुंचते, हम पीड़ा में रहेंगे। सारी पीड़ा संकेत देती है कि हम किसी न किसी प्रकार से अस्वाभाविकता पूर्वक जी रहे हैं। सारी पीडा बस इसी बात का लक्षण है कि किसी न किसी प्रकार से हमास स्वभाव परित नहीं हो रहा है, कि किसी न किसी भांति हम अपनी वास्तविकता के सन लय में नहीं हैं। यह पीड़ा तुम्हारी शत्रु नहीं है, यह बस एक लक्षण है। यह संकेत करती है। यह एक तापमापी, थर्मामीटर जैसी है; यह बस यह प्रदर्शित करती है कि तुम कहीं पर गलत हो। इसको ठीक कर लो, अपने आपको सही कर लो; स्वयं को लयबद्धता में ले आओ, वापस लौटो, स्वयं को लय में लाओ। जब प्रत्येक पीड़ा खो जाती है तो व्यक्ति अपने स्वभाव के साथ लय में होता है। इस स्वभाव को लाओत्सु ताओ कहता है, पतंजलि कैवल्य कहते हैं, महावीर मोक्ष कहते हैं, बुद्ध निर्वाण कहते हैं। लेकिन तुम इसको चाहे कुछ भी नाम दो-इसका न कोई नाम है और न कोई रूप- यह तुम्हारे भीतर है वर्तमान, ठीक इसी क्षण में। तुमने सागर को खो दिया था क्योंकि तुम अपने स्व से बाहर आ गए थे। तुम बाहर के संसार में बहुत अधिक दूर चले गए थे। भीतर की ओर चलो। इसको अपनी तीर्थयात्रा बन जाने दो-भीतर चलो।
ऐसा हुआ, एक सूफी रहस्यदर्शी बायजीद मक्का की तीर्थयात्रा पर जा रहा था। यह कठिन कार्य था। वह निर्धन था और वर्षों भीख मांग कर किसी तरह उसने यात्रा के खर्चों का इंतजाम किया था। अब वह बहुत खुश था। उसके पास मक्का जाने के लिए करीब-करीब पूरे रुपये हो गए थे, और तब उसने यात्रा की। जिस समय वह मक्का के बाहर पहुंचा, तो बस नगर के बाहर ही उसे एक फकीर, उसका सदगुरु मिल गया। वह वहां एक वृक्ष के नीचे बैठा हुआ था और उसने कहा : अरे मूर्ख, तुम कहां जा रहे हो? बायजीद ने उसकी तरफ देखा, उसने ऐसा तेजस्वी व्यक्तित्व कभी नहीं देखा था। वह उस व्यक्ति के निकट आया और उस फकीर ने कहा? तुम्हारे पास जो कुछ भी हो मुझको दे दो! तुम कहां जा रहे हो? वह बोला, मैं तीर्थयात्रा के लिए मक्का जा रहा हूं। उसने कहा. समाप्त। कोई आवश्यकता नहीं है, तुम बस मेरी उपासना कर लो। मेरे चारों ओर तुम जितनी बार चाहो उतनी बार गोल-गोल घूम सकते हो। तुम अपनी परिक्रमा, अपना चक्कर मेरे चारों ओर पूरा कर सकते हो। मैं मक्का हूं? और बायजीद उस व्यक्ति के चंबकत्व से इतना ओत-प्रोत हो गया कि उसने अपना सारा धन दे दिया, उसने उसकी उपासना की 1 फिर उस बूढ़े आदमी ने कहा अब घर लौट जाओ; और वह वापस घर लौट गया।
जब वह अपने नगर में गया, तो लोग एकत्रित हो गए और बोले, लगता है कि तुमको कुछ हो गया है। क्या वास्तव में इससे कुछ होता है, मक्का जाने से कुछ हो जाता है? तम तेजस्वी, प्रकाश से इतने भरे हए लग रहे हो। उसने कहा : यह मूर्खता भरी बातें मत करो! मझको एक का आदमी मिल गयाउसने मेरी सारी तीर्थयात्रा की दिशा बदल दी। वह कहता है, घर जाओ, और तब से मैं घर जा रहा है भीतर की ओर। मैं पहुंच गया हूं। मैं पहुंच गया हूं मैं अपनी मक्का पहुंच चुका हूं।