Book Title: Patanjali Yoga Sutra Part 05
Author(s): Osho
Publisher: Unknown

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Page 452
________________ सदैव नये का चुनाव करो, भले ही यह पुराने से बुरा प्रतीत होता हो। मैं कहता हूं सदैव नये का चुनाव करो। यह असुविधाजनक लगता है - नये का चुनाव करो। यह असहज है, असुरक्षित है-नये का चुनाव करो। यह कोई नये का प्रश्न नहीं है, यह तुमको अधिक सजग होने को अवसर देने के लिए है। तुमको लक्ष्य के रूप में दक्षता सिखाई गई है। यह लक्ष्य नहीं है। सजगता है लक्ष्य दक्षता तुमसे बार-बार पुराने रास्ते का अनुगमन करवाती है, क्योंकि पुराने रास्ते पर तुम अधिक दक्ष होगे। तुम सभी मोड़ और घुमाव जान लोगे तुमने इस पर इतने वर्षों से या शायद इतने जन्मों से यात्रा की हुई है कि तुम और-और दक्ष हो जाओगे। लेकिन दक्षता नहीं है लक्ष्य दक्षता यांत्रिकता के लिए लक्ष्य है यत्र को दक्ष होना चाहिए, लेकिन मनुष्य को? मनुष्य कोई यंत्र नहीं है। मनुष्य को अधिक सजग । होना चाहिए, और यदि इस सजगता से दक्षता आ जाती है, शुभ है, सुंदर है यह। यदि यह दक्षता सजगता की कीमत पर आती है, तो तुम जीवन के विरोध में बड़ा पाप कर रहे हो, और तब तुम अप्रसन्न बने रहोगे। और यह अप्रसन्नता जीवन की एक शैली बन जाएगी। तुम बस एक दुष्चक्र में घूमते रहोगे। एक अप्रसन्नता तुमको दूसरी अप्रसन्नता में ले जाएगी और इसी भांति यह सिलसिला चलता चला जाएगा। - सजगता की विषयवस्तु के रूप में अप्रसन्नता एक वरदान है, लेकिन जीवन की एक शैली के रूप में अप्रसन्नता अभिसाप है। इसको अपने जीवन का रंग-ढंग मत बना लो। मैं देखता हूं कि अनेक लोगों ने इसे अपने जीवन का ढंग बना रखा है वे जीवन का कोई दूसरा ढंग जानते ही नहीं हैं। यदि तुम उनसे कहो तो भी वे नहीं सुनेंगे। वे पूछते चले जाएंगे कि वे अप्रसन्न क्यों हैं, लेकिन वे यह नहीं सुनेंगे कि वे स्वयं ही प्रतिक्षण अपनी अप्रसन्नता निर्मित कर रहे हैं कर्म के सिद्धात का यही अर्थ है। कर्म का सिद्धांत कहता है कि तुम्हारे साथ जो कुछ भी घटित हो रहा है वह तुम्हारा किया - धरा है। कहीं किसी अचेतन तल पर तुम इसको निर्मित कर रहे हो - क्योंकि तुम्हारे साथ बाहर से कुछ भी नहीं घटता प्रत्येक चीज भीतर से उभर कर आती है। यदि तुम उदास हो, तो अपने अंतर्तम अस्तित्व वहीं से आती है यह। अपनी आत्मा के 1 कहीं न कहीं तुम ही इसको निर्मित कर रहे होगे। कहीं न कहीं तुम ही इसको निर्मित कर रहे होगे। यदि तुम पीड़ा में हो, तो निरीक्षण करो, अपनी पीड़ा पर ध्यान दो, तुम इसे किस भांति निर्मित कर लेते हो, ध्यान लगाओ। तुम सदैव पूछा करते हो, पीड़ा के लिए कौन उत्तरदायी है?' तुम्हारे अतिरिक्त और कोई उत्तरदायी नहीं है। यदि तुम पति हो तो तुम्हारा मन कहे चला जाता है कि तुम्हारी पत्नी तुम्हारी पीड़ा निर्मित कर रही है। यदि तुम पत्नी हो तो तुम्हारा पति तुम्हारी पीड़ा निर्मित कर रहा है। यदि तुम निर्धन हो तो धनवान तुम्हारी पीड़ा निर्मित कर रहा है। यह मन सदा किसी और पर उत्तरदायित्व थोपे चला जाता है। इसे बहुत आधारभूत समझ बन जाना चाहिए कि? तुम्हारे अतिरिक्त कोई अन्य उत्तरदायी नहीं है। एक बार तुम इसको समझ लो, चीजें बदलना आरंभ हो जाती हैं। यदि तुम अपनी पीड़ा निर्मित कर रहे हो

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