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और तुम इसको प्रेम करते हो तब इसे निर्मित करते रहो। फिर इससे कोई समस्या मत खड़ी करो। तुम्हारे मामले में हस्तक्षेप करना किसी का काम नहीं है। यदि तुम उदास होना चाहते हो, तुमको उदास होने से प्रेम है, तो पूरी तरह से उदास हो जाओ। लेकिन यदि तम उदास होना नहीं चाहते हो, तब कोई आवश्यकता नहीं है-इसको निर्मित मत करो। निरीक्षण करो कि तुम किस भांति अपनी पीड़ा निर्मित करते हो, उसका ढांचा किस तरह का है? -तुमने अपने भीतर किस प्रकार से इसे तैयार कर लिया है? लोग लगातार अपनी भाव-दशाएं निर्मित कर रहे हैं। तुम दूसरों पर उत्तरदायित्व थोपते चले जाते हो, फिर तुम कभी नहीं बदलोगे। फिर तुम पीड़ा में बने रहोगे, क्योंकि तुम कर ही क्या सकते हो? यदि दूसरे पीड़ा निर्मित कर रहे हैं, तो तुम क्या कर सकते हो? जब तक कि दूसरे न बदल जाएं तुम्हारे हाथ में कुछ नहीं है। दूसरों पर उत्तरदायित्व थोप कर तुम एक गुलाम बन जाते हो। उत्तरदायित्व को अपने स्वयं के हाथों में ले लो।
कुछ दिन पूर्व एक संन्यासिनी ने मुझको बताया कि उसका पति सदैव उसके लिए समस्याएं उत्पन्न करता रहा है। और जब उसने अपनी कहानी सुनाई, तो ऊपर से ऐसा ही प्रतीत होता कि निःसंदेह उसका पति उत्तरदायी है। अपने पति से उसके आठ बच्चे हैं, और फिर एक अन्य स्त्री से उसके पति के तीन और बच्चे हैं, और अपनी सचिव से एक बच्चा है। अपने संपर्क में आने वाली हर स्त्री से वह सदैव चाहत का खेल खेला करता था। निःसंदेह इस बेचारी स्त्री से हर किसी को सहानुभूति हो जाएगी, उसने कितनी अधिक पीड़ा भोगी है, और यह सब चल रहा है। पति कोई बहुत अधिक कमा भी नहीं रहा है। यह स्त्री उसकी पैली कमाती है और उसको इन बच्चों का भी, जिनको उसने अन्य महिला दवारा जन्माया है, व्यय वहन करना पड़ता है। निःसंदेह वह बहत पीड़ा में है, लेकिन कौन उत्तरदायी है? मैंने उससे कहा : यदि तुम वास्तव में पीड़ा में हो तो तुम्हें इस आदमी के साथ रहना क्यों जारी रखना चाहिए? छोड़ दो। तुम्हें बहुत पहले ही छोड़ देना चाहिए था। संबंध जारी रखने की कोई आवश्यकता नहीं है। और वह समझ गई, जो एक दुर्लभ घटना है-बहुत बाद में, बहुत देर से समझी, लेकिन फिर भी अधिक देर नहीं हुई। अब भी उसका जीवन शेष है। अब यदि वह जोर देती है कि वह इस आदमी के साथ रहना पसंद करेगी तो वह अपनी स्वयं की पीड़ा पर जोर दे रही है। तब वह पीड़ा में जाने का मजा ले रही है। तब वह पति की निंदा करने का मजा ले रही है, तब वह हर किसी से सहानुभूति प्राप्त करने का मजा ले रही है। और निःसंदेह वह जिस किसी के भी संपर्क में आएगी वे उस बेचारी महिला के प्रति सहानभूति व्यक्त करेंगे।
कभी सहानुभूति मत मांगो। समझ की मांग करो, लेकिन सहानुभूति कभी मत मांगो। वरना सहानुभूति इतनी अच्छी लग सकती है कि तुम पीड़ा में बने रहना पसंद करोगे। तब पीड़ा में तुम्हारा निवेश हो जाता है। यदि तुम पीडा में नहीं रहे तो लोग तुमसे सहानुभूति नहीं रखेंगे। क्या तुमने कभी निरीक्षण किया है? – प्रसन्न व्यक्ति के साथ कोई सहानुभूति नहीं रखता। यह कुछ नितांत असंगत बात है। लोगों को प्रसन्न व्यक्ति के साथ सहानुभूति रखना चाहिए, लेकिन उससे कोई सहानुभूति नहीं रखता। वास्तव में तो लोग प्रसन्न व्यक्ति के प्रति शत्रुता अनुभव करते हैं। वस्तुत: प्रसन्न हो जाना बहुत