________________
दबाते जाएं तो और भी छोटी हो जाएगी। पतंजलि कहते हैं. फिर वह छोटी सी मात्रा भी खो जाएगी। अब भौतिकविद कहते हैं कि जब पदार्थ मिटता है तो यह ब्लैक होल, कृष्ण-विवर छोड़ जाता है।
प्रत्येक वस्तु ना-कुछपन से आती है, चारों ओर खेलती है, और फिर ना-कुछपन में समा जाती है। जैसे कि पदार्थ के पिंड हैं : पृथ्वी, सूर्य, सितारे, ठीक उनके समान ही खाली छेद हैं, कृष्ण-विवर हैं। ये कष्ण-विवर ना-कछपन का संघनित रूप हैं। यह केवल ना-कछपन नहीं है; यह बहत गतिशील हैना- कुछपन का भंवर है। यदि कोई सितारा किसी कृष्ण-विवर, ब्लैक होल के निकट आ जाता है तो कृष्य विवर इनको सोख लेगा। इसलिए यह बहुत गतिशील है, किंतु यह कुछ नहीं है-इसमें कोई पदार्थ नहीं है, बस पदार्थ की अनुपस्थिति है, मात्र शुद्ध रिक्तस्थान है, लेकिन अत्यधिक शक्तिशाली है। यह अपने भीतर किसी सितारे तक को सोख सकता है, और वह सितारा ना-कुछपन में खो जाएगा; यह ना-कुछपन में बदल दिया जाएगा। इसलिए यदि हम कोशिश करें तो अंततोगत्वा सारा पदार्थ खो जाएगा। यह परम शून्य से आता है, और पुन: यह परम शून्यता में लीन हो जाता है; शून्य से निकलता है और शून्यता में लौट जाता है।
'प्रतिक्षण घटने वाले परिवर्तनों के सातत्य की प्रक्रिया.. .महा छलांग की प्रक्रिया. .तीन गणों के रूपांतरण के परम अंत पर घटित होती है-यही क्रम है।'
अंतिम अवस्था पर योगी यही देखत है, जब सभी तीनों गुण कृष्ण-विवर में लीन हो रहे हैं, शून्यता में विलीन हो रहे हैं। इसी कारण से योगियों ने इस संसार को माया, एक जादू का खेल कहा है।
क्या तुमने कभी किसी जादूगर को सेकंडों में एक आम का वृक्ष उत्पन्न करते हुए देखा है, और फिर यह बढ़ता चला जाता है; और न केवल यही-कुछ ही क्षणों में इसमें आम भी निकल आते हैं.....कुछ नहीं में से? बस भ्रामक है यह, वह भ्रम उत्पन्न कर देता है। हो सकता है कि वह तुम्हारे अवचेतन को गहन संदेश भेजता हो। बस गहन सम्मोहन की भांति है यह। एक खयाल निर्मित करता है वह, लेकिन वह अपने खयाल को अति गहनता से अपने मन में देखता है और वह इसको तुम्हारे अवचेतन पर इतनी गहराई से अंकित कर देता है कि तम वही सब देखना आरंभ कर देते हो जो वह चाहता है कि तुम देखो। हो कुछ भी नहीं रहा है। वृक्ष वहां पर नहीं है, आम भी वहां नहीं है। और यह संभव है, बस महत कल्पना के द्वारा आम का वृक्ष निर्मित कर देना और आम का आ जाना। न केवल यह बल्कि वह एक आम तोड़ सकता है और इसको तुम्हें दे सकता है और तुम कहोगे, 'बहुत मीठा है।'
हिंदु संसार को माया, जादू का खेल कहते हैं। परमात्मा की कल्पना है यह। समग्र अस्तित्व स्वप्न देख रहा है, समग्र अस्तित्व प्रक्षेपण कर रहा है।
तुम एक चल-चित्र देखने जाते हो : एक बड़े पर्दे पर तुम एक महान कहानी को अभिनीत किया जाना देखते हो, और तुम देखते हो कि प्रत्येक घटना एक सातत्य में प्रतीत होती है। लेकिन ऐसा नहीं