Book Title: Patanjali Yoga Sutra Part 05
Author(s): Osho
Publisher: Unknown

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Page 442
________________ अब वह जान लेगी कि सागर की वह कितनी आभारी है। उस दुख ने एक समझ निर्मित कर दी है। इसके पहले वह इसी सागर में थ | वही सागर वैसा ही न रहा, क्योंकि एक नई समझ, एक नई सजगता, एक नई प्रत्यभिज्ञा उत्पन्न हो गई है। मनुष्य को परमात्मा से बाहर फेंके जाने की आवश्यकता है। संसार में फेंका जाना और कुछ नहीं वरन परमात्मा से बाहर फेंका जाना है। और यह करुणावश किया जाता है, समग्र की करुणा के कारण ही तुम्हें बाहर फेंका गया है, जिससे तुम वापस लौटने का रास्ता खोजने का प्रयास करों। प्रयास से, 'कठिन प्रयास से तुम पहुंच पाने में समर्थ हो पाओगे और तभी तुम समझोगे। तुमको अपने प्रयासों से इसका मूल्य चुकाना पड़ता है, वरना परमात्मा बहुत सस्ता हो जाएगा। और जब कोई चीज बहुत सस्ती होती है तो तुम उसका 'मजा नहीं ले सकते। वरना परमात्मा अत्यधिक सुस्पष्ट हो जाएगा। जब कोई वस्तु बहुत सरलता से उपलब्ध होती है तुम में उसको भूल जाने की प्रवृत्ति हो जाती है। अन्यथा परमात्मा तुमसे अत्यधिक निकट होता और उसको जान पाने के लिए कोई अंतराल भी नहीं होता। वह असली पीड़ा होगी, उसको न जान पाना। इस संसार की पीड़ा कोई पीड़ा नहीं हैं; यह एक छिपा हुआ वरदान है, क्योंकि इस पीड़ा के माध्यम से ही तुम.......दिव्य सत्य के आमने-सामने देखने के, उसे पहचानने के परम आह्लाद को जान पाआगे। 'अपने उद्देश्य को परिपूर्ण कर लिए जाने के कारण तीनों गुणों में परिवर्तन की प्रक्रिया समाप्त हो जाती है।' तीन गुणों सत्व, रजस, तमस का यह सारा संसार मिट जाता है। जब कोई संबद्ध हो जाता है तो उसके लिए यह संसार समाप्त हो जाता है। अन्य सभी निःसंदेह स्वप्नलोक में विचरते रहते हैं। यदि तट पर गर्म रेत में तपती धूप में अनेक मछलियां पीड़ा में हैं, और एक मछली प्रयास करती है, और फिर प्रयास करती है और सागर में छलांग लगा देती है, पन: घर वापस लौट आती है, उसके लिए तपती धूप और जलती हुई रेत और सारी पीड़ा मिट गई है। यह अतीत का एक बुरा स्वप्न बन गया है, लेकिन अन्य मछलियों के लिए इस पीड़ा का अस्तित्व है। जब कोई बुद्ध, पतंजलि जैसी मछली सागर में छलांग लगा देती है तो उसके लिए संसार खो जाता है। वे पुन: सागर के शीतल गर्भ में होते हैं। वे पुन: वापस लौट आए हैं, अनंत जीवन से संबंधित हो गए हैं वे। वे अब असंबद्ध न रहे; अब वे अजनबी नहीं रहे हैं : सजग हो गए हैं वे। वे एक नई समझ के साथ वापस लौट आए हैं. सजग, संबुद्ध होकर-लेकिन दूसरों के लिए संसार जारी रहता है। पतंजलि के ये सूत्र और कुछ नहीं बल्कि उस मछली के संदेश हैं जो घर पहुंच चुकी है, और उन लोगों से, जो अभी भी किनारे पर हैं और पीडित हैं, कुछ कहने का और उन सभी के कूद आने को प्रेरित करने का प्रयास है। हो सकता है कि वे लोग सागर से अति निकट हैं, बस सीमा रेखा पर हैं, लेकिन वे नहीं जानते कि इस में किस भांति प्रविष्ट हआ जाए। वे पर्याप्त प्रयास कर रहे हैं, या अपने प्रयास

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