Book Title: Patanjali Yoga Sutra Part 05
Author(s): Osho
Publisher: Unknown

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Page 434
________________ विचारों का त्याग हो जाता है। तुमने उनको छोड़ना आरंभ कर दिया है। तुम उनको और अधिक ऊर्जा नहीं देते हो; तुम उनके साथ सहयोग नहीं करते। तुम्हारा सहयोग समाप्त हो चुका है, और वे तुम्हारी ऊर्जा के बिना जी नहीं सकते। वे तुम्हारी ऊर्जा पर जीते हैं, वे तुम्हारा शोषण करते हैं। उनके पास अपनी स्वयं की ऊर्जा नहीं है। प्रत्येक विचार जो तुम्हारे भीतर प्रविष्ट होता है तुम्हारी ऊर्जा में भागीदारी करता है। और क्योंकि तुम अपनी ऊर्जा देने को तैयार हो, यह वहां रहता है, यह अपना घर वहीं बना लेता है। निःसंदेह, फिर उसके बच्चे आते हैं, और मित्र, और संबंधी, और यह चलता चला जाता है। एक बार तुम थोडा सा सजग हो जाओ, विवेक वैराग्य ले आता है, सजगता त्याग लेकर आती है। और त्याग तुमको और सजग होने में समर्थ बना देता है। और निःसंदेह, और सजगता और वैराग्य और त्याग लेकर आती है, और इसी प्रकार यह श्रृंखला चलती चली जाती है। यही है जिसको मैं पवित्र चक्र कहता हं : एक पवित्रता दूसरी की ओर ले जाती है, और प्रत्येक पवित्रता पुन: और अधिक पवित्रता के उदय के लिए आधार प्रदान करती है। पतंजलि कहते हैं : यह अंतिम क्षण तक जारी रहता है, जिसे वे धर्ममेघ समाधि कहते हैं। इस पर हम लोग बाद में चर्चा करेंगे। वे इसे 'तुम पर बरसता हुआ पवित्रता का बादल' कहते हैं। यह पवित्र चक्र वैराग्य की ओर ले जाता हुआ विवेक, और अधिक विवेक की ओर ले जाता वैसल, पुन: वैराग्य की और संभावनाएं उत्पन्न कुरता हुआ विवेक, और इसी भांति यह और- और आगे बढ़ता चला जाता है-पहुंच जाता है उस परम शिखर पर जब पवित्रता का बादल तुम पर बरसता है : धर्ममेघ समाधि। 'पूर्व के संस्कारों के बल के माध्यम से विवेक ज्ञान के अंतराल में अन्य प्रत्ययों, अवधारणाओं का उदय होता है।' फिर भी, यद्यपि वहां अनेक अंतराल होंगे। इसलिए हतोत्साहित मत हो जाओ। भले ही तुम बहुत सजग हो चुके हो और किन्ही क्षणों मे तुम अचानक एक खिंचाव, प्रसाद का ऊर्ध्वमुखी खिंचाव अनुभव करते हो, और किन्ही क्षणों में तुम धारा में होते हो; पूरे सौंदर्य के साथ, बिना प्रयास के, प्रयास शून्यता में बहते हुए होते हो, और सभी कुछ सहजता से चल रहा है, गतिमान है, फिर भी वहां कुछ अंतराल होते हैं। अचानक तुम स्वयं को, बस पुरानी आदतों के कारण, किनारे पर खड़ा हुआ पाते हो। अनेक जन्मों से तुम किनारे पर जीते रहे हो। पुरानी आदत के कारण बार-बार अतीत तुम पर हावी ही जाएगा। इससे हतोत्साहित मत हो जाना। जिस क्षण तुम देखते हो कि तुम फिर से किनारे पर आ गए हो, पुन: धारा में उतर जाओ। इसके बारे में उदास मत होओ, क्योंकि यदि तुम उदास हो जाते हो तो तुम पुन: दुष्चक्र में फंस जाओगे। इसके बारे में उदास मत हो जाओ। अनेक बार खोजी बहुत निकट पहुंच जाता है, आर अनेक बार वह पथ से च्युत हो जाता है। चिंता करने की कोई आवश्यकता नहीं है, पुन: सजगता को ले आओ। अनेक बार यही होने जा रहा है; स्वाभाविक है यह। लाखों जन्मों

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