________________
निःसंदेह विवेक के चरम की आवश्यकता पड़ेगी। तुमको जागरूक होना पडेगा-इतना अधिक जागरूक कि सारे संताप से मुक्त हो जाने की, सारे बंधन से मुक्त हो जाने की जो बहुत, बहुत गहरी इच्छा है-यह इच्छा तक नहीं उठती है। तुम्हारी सजगता इतनी पूर्ण है कि तुम्हारे अस्तित्व का कोई छोटा सा कोना तक अंधकार में नहीं रहता। तुम प्रकाश से भरे हए हो, सजगता से प्रदीप्त हो। यही कारण है कि जब भी बदध से बार-बार पछा गया, जो व्यक्ति संबदध हो जाता है उसे क्या हो जाता चुप रहते हैं। वे कभी उत्तर नहीं देते हैं। बार-बार उनसे पूछा जाता है, आप उत्तर क्यों नहीं देते गुम वे कहते हैं, यदि मैं उत्तर देता हूं तो तुम उसके लिए इच्छा निर्मित कर लोगे और वह इच्छा एक अवरोध बन जाएगी। मुझको चुप रहने दो। मुझको मौन ही रहने दो, जिससे मैं तुमको इच्छा करने के लिए नया विषय न दे दूं। यदि मैं कहूं यह सच्चिदानंद है, यह सत्य है, यह चैतन्य है, यह आनंद है, तो
चानक तम्हारे भीतर एक इच्छा उठ खडी होगी। यदि मैं परमात्मा में लीन होने की आहलादकारी अवस्था के बारे में बात करूं, अचानक तुम्हारा लोभ इसको पकड़ लेता है। अचानक तुम्हारे भीतर एक इच्छा उठने लगती है। तुम्हारा मन कहने लगता है, हां, तुमको इसकी खोज करना चाहिए, तुमको इसे पाना पड़ेगा, इसका अन्वेषण किया जाना चाहिए। चाहे कुछ भी मूल्य चुकाना पड़े तुमको आनंदित हो ही जाना है। बुद्ध कहते हैं, मैं इसके बारे में कुछ न कहंगा, क्योंकि मैं जो कुछ भी कहता हूं तुम्हारा मन इस पर कूद पड़ेगा और इसमें से एक इच्छा बना लेगा, और यह कारण बन जाएगी, और तुम कभी इसे उपलब्ध नहीं कर पाओगे।
बुद्ध ने इस पर जोर दिया कि कोई मोक्ष नहीं है। उन्होंने बल देकर कहा कि जब व्यक्ति जाग जाता है तो वह बस मिट जाता है। वह इसी प्रकार से मिट जाता है जैसे कि तुम एक दीये पर फूंक मारते हो और प्रकाश मिट जाता है। इस शब्द 'निर्वाण' का बस यही अर्थ है : दीये को फूंक मार कर बुझा देना। फिर तुम नहीं पूछते कि ज्योति कहां चली गई, ज्योति को क्या हो गया है-यह बस खो जाती है, तिरोहित हो जाती है। बुद्ध ने जोर दिया कि कुछ भी शेष नहीं रहता; जब तुम संबुद्ध हो जाते हो तो सभी कुछ खो जाता है जैसे कि दीये की लौ बुझा दी गई हो। क्यों? -यह कथन बहुत नकारात्मक प्रतीत होता है, लेकिन वे तुम्हें इच्छा के लिए कोई विषय वस्तु देना नहीं चाहते। फिर लोगों ने पूछना आरंभ कर दिया, फिर हम ऐसी अवस्था के लिए प्रयास ही क्यों करें? तब तो संसार में रहना ही बेहतर है। कम से कम हम हैं तो; पीड़ा में हैं लेकिन कम से कम हैं तो; संताप में हैं लेकिन हम हैं। और आपकी ना-कुछपन की अवस्था हमारे लिए कोई आकर्षण नहीं रखती है।
भारत में बौद्ध धर्म मिट गया; चीन में, बर्मा में, श्री लंका में, जापान में यह पुन: प्रकट हुआ। लेकिन यह अपनी शुद्धता मे पुन: कभी प्रकट नहीं हुआ, क्योंकि बौद्धों ने एक पाठ सीख लिया कि व्यक्ति इच्छा के माध्यम से जीता है। यदि वे जोर दें कि संबोधि के परे कुछ भी नहीं है और सभी कुछ मिट जाता है, तो लोग उनका अनुगमन नहीं करने वाले हैं। फिर प्रत्येक चीज वैसी ही रहेगी जैसी थी, केवल उनका धर्म खो जाएगा। अत: उन्होंने एक चालाकी सीख ली। और जापान में, चीन में, श्री लंका में उन्होंने भी संबोधि के बाद की मोहक अवस्थायों के बारे में बात करना आरंभ कर दिया। उन्होंने बुद्ध