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से हम बेहोशी में जीते रहे हैं-यह स्वाभाविक ही है कि अनेक बार पुरानी आदत कार्य करना आरंभ कर देगी। मैं तुमको कुछ कहानियां सुनाता हूं। एक बड़े होटल के स्वागत-कक्ष में अपनी सचिव के साथ पहुंचे हुए बॉस ने बड़े आत्म-विश्वास से श्रीमती एवं श्रीमान का भांति हस्ताक्षर कर दिए।
डबल बेड या दो अलग बेड वाला कमरा? क्लर्क ने जानना चाहा। वह अपनी सचिव की ओर मुड़ा और यूं ही पूछा, क्या डबल बेड उचित रहेगा प्रिये?
यस सर, उसने उत्तर दिया।
यस सर, पत्नी पति से कह रही है। लेकिन बस सचिव होने की पुरानी, लगातार यस सर, यस सर, यस सर कहने की आदत। आदतें बहुत गहराई तक पहुंच जाती हैं, और वे तुम पर इस भांति कब्जा कर लेती हैं कि जब तक तुम बहुत, बहुत ही होशपूर्ण न हो तुम इस बात को पकड़ भी न पाओगे। ऐसा हुआ, एक अध्यापिका ने क्रोधित होकर स्थानीय पुलिस चौकी में यह शिकायत करने के लिए फोन किया कि कुछ शरारती युवाओं ने उसके दरवाजे पर चाक से अंग्रेजी में गालिया लिख दी हैं। और मेरे लिए दुख की बात तो यह है कि उसने बात समाप्त करते हुए कहा, उन्होंने उनकी स्पेलिंग भी गलत लिखी है।
अध्यापिका बस एक अध्यापिका है। वह गालियों की शिकायत कर रही है, लेकिन मूलभूत शिकायत यह है कि उन लोगों ने उनकी स्पेलिंग तक गलत लिख रखी है। लगातार बच्चों की कापियों में स्पेलिंग ठीक करते रहना उसकी आदत है...
'पूर्व संस्कारों के बल के माध्यम से विवेक ज्ञान के अंतराल में, अन्य प्रत्ययों अवधारणाओं का उदय होता है।'
अनेक बार तुम वापस खींच लिए जाओगे, बार-बार, बार-बार ऐसा होगा। संघर्ष कठिन है, लेकिन
नहीं है। यह कठिन है, यह बहत मुश्किल है, लेकिन उदास मत हो जाओ, और हतोत्साहित मत हो जाओ। जब कभी भी तुम पुन: स्मरण करो, तो जो हो चुका है उसके बारे में चिंता मत करो। अपनी सजगता को पुन: स्थापित हो जाने दो, यही है सब कुछ। अपनी सजगता को बार-बार और बार-बार स्थापित करते रहना तुम्हारे अस्तित्व पर एक नया प्रभाव, पवित्रता की एक नई छाप निर्मित कर देगा। एक दिन यह उतनी ही स्वाभाविक हो जाएगी जितनी तुम्हारी दूसरी आदतें हैं।
'वह जिसमें समाधि की सर्वोच्च अवस्थाओं के प्रति भी इच्छारहितता का सातत्य भा है और जो विवेक के चरम का प्रवर्तन करने में समर्थ है, उस अवस्था में प्रविष्ट हो जाता है जिसे धर्ममेघ समाधि कहा जाता है।'