Book Title: Patanjali Yoga Sutra Part 05
Author(s): Osho
Publisher: Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 433
________________ धारा में कूद पड़ना। तुम किनारे पर बैठे हुए हो। धारा में प्रविष्ट हो जाओ और तब धारा शेष कार्य कर लेगी। यह इस प्रकार से है कि तुम एक ऊंचे भवन पर खड़े हो, एक ऊंचे भवन की छत पर खड़े हो, पृथ्वी से तीन सौ फीट या पांच सौ फीट ऊपर । तुम खड़े रहते हो, गुरुत्वाकर्षण तुम तक पहुँच गया है, लेकिन यह उस समय काम नहीं करेगा जब तक तुग्र छलाग न लगाओ। एक बार तुम कूद जाओ, फिर तुमको कुछ करने की आवश्यकता नहीं है। बस छत से एक कदम आगे बढ़ाओ.. . बस पर्याप्त है; तुम्हारा कार्य समाप्त हो गया। अब गुरुत्वाकर्षण सारा कार्य कर लेगा। तुमको पूछने की आवश्यकता नहीं है, अब मुझको क्या करना चाहिए? तुमने पहला कदम उठा लिया है। पहला कदम ही अंतिम कदम है। कृष्णमूर्ति ने एक पुस्तक लिखी है. प्रथम और अंतिम मुक्ति इसका अभिप्राय है पहला कदम ही आखिरी कदम है- क्योंकि एक बार तुम धारा में आ जाओ, फिर शेष सभी कुछ धारा के द्वारा कर लिया जाएगा। तुम्हारी आवश्यकता नहीं है। केवल पहले कदम के लिए तुम्हारे साहस की आवश्यकता पड़ती है। 'तब विवेक उन्मुख चित्त कैवल्य की ओर आकर्षित हो जाता है।' तुम धीरे- धीरे ऊपर की ओर उठने लगते हो। तुम्हारी जीवन-ऊर्जा ऊपर ही ओर, उर्ध्व दिशा में गतिमान होना आरंभ हो जाती है। और जब ऐसा घटित होता है तो यह अविश्वसनीय है, क्योंकि तुमने अभी तक जितने भी नियम जाने हैं यह उन सभी के विरोध में है। यह गुरुत्वाकर्षण नहीं, ऊर्ध्वाकर्षण है। तुम्हारे भीतर कुछ बस ऊपर की ओर जाना आरंभ कर देता है, और इसमें कोई अवरोध नहीं है। इसके रास्ते में कोई बाधा नहीं देता। बस थोड़ी सी विश्रांति थोड़ी सी अनासक्तिपहला कदम और फिर स्वत: सहजतापूर्वक तुम्हारी चेतना और – और विवेकपूर्ण और – और सजग हो जाती है। - मैं तुमसे एक और बात कहना चाहता हूं तुमने यह शब्द, यह कथन : 'दुष्चक्र' सुना होगा। हम एक नया शब्द गढ़ते हैं पवित्र चक्र दुष्चक्र में एक बुरी बात किसी और बुरी बात पर ले जाती है। 1 उदाहरण के लिए, यदि तुम क्रोधित हो जाते हो, तो एक क्रोध तुमको और अधिक क्रोध में ले जाता है, और निःसंदेह अधिक क्रोध तुमको और अधिक क्रोध में ले जाएगा। अब तुम एक दुष्चक्र में हो। प्रत्येक क्रोध तुम्हारी क्रोध की प्रवृत्ति को और सशक्त बनाएगा तथा और क्रोध निर्मित करेगा, तथा यह और क्रोध इस आदत को और भी सबल बना देगा और यह जारी रहेगा। तुम एक दुष्चक में घूमते हो, यह सबल और सशक्त और बलवान होता चला जाता है। चलो हम एक नया शब्द प्रयोग करते हैं : पवित्र चक्र । यदि तुम सजग हो जाते हो, जिसको पतंजलि विवेक, बोध कहते हैं; यदि तुम सजग हो जाते हो, तो वैराग्य विवेक से वैराग्य निर्मित होता है। यदि तुम सजग हो जाते हो, तो अचानक तुम देखते हो कि अब तुम शरीर न रहे। ऐसा नहीं है कि तुमने देह को त्याग दिया है, तुम्हारी सजगता से ही शरीर से आसक्ति का त्याग हो जाता है। यदि तुम सजग हो जाते हो तो तुमको बोध हो जाता है कि ये विचार तुम नहीं हो। उस सजगता में ही उन

Loading...

Page Navigation
1 ... 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471