Book Title: Patanjali Yoga Sutra Part 05
Author(s): Osho
Publisher: Unknown

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Page 429
________________ है; तुम नहीं बता सकते कि स्वास्थ्य कहां है। यदि तुमको सिरदर्द है तब तुम जान लेते हो कि यह वहां है, लेकिन क्या तुमने सिरदर्द की अनुपस्थिति को कभी जाना है? वस्तुत: यदि सिरदर्द न हो तो सिर खो जाता है। तुमको इसकी अनुभुति नहीं होती। यदि तुमको अपने सिर की अनुभूति सतत होती रहती है, इसका सीधा अर्थ है कि भीतर किसी विशेष प्रकार का तनाव, एक विशेष तनावग्रस्तता, एक दवाब होना चाहिए। वहां लगातार एक विशेष प्रकार का सिरदर्द बना रहना चाहिए। यदि तुम्हारा सारा शरीर स्वस्थ है, तो शरीर का अनुभव खो जाता है। तुम भूल जाते हो कि शरीर है। झेन में, जब ध्यान करने वाले कई वर्षों तक बैठा करते हैं, बस बैठे रहते हैं और कुछ नहीं करते, फिर एक ऐसा क्षण आता है जब वे भूल जाते हैं कि उनके पास शरीर भी है। यह उनकी पहली सतोरी है। ऐसा नहीं शरीर नहीं है; शरीर वहां है, लेकिन उसमें कोई तनाव नहीं है, तो उसका अनुभव कैसे हो? यदि मैं कुछ कहूं तो तुम मुझको सुन सकते हो, लेकिन यदि मैं चुप हूं तब तुम मुझे कैसे सुन सकते हो? मौन हैतुमसे कहने के लिए बहुत कुछ है लेकिन मौन को सुना नहीं जा सकता। कभी-कभी जब तुम कहते हो, हां, मैं मौन को सुन सकता हूं तब तुम किसी शोर को सुन रहे हो। हो सकता है कि यह अंधेरी रात का शोर हो, लेकिन फिर भी यह शोर है। यदि यह परिपूर्ण मौन हो तो तुम इसको सुन न पाओगे। जब तुम्हारा शरीर पूर्णतः स्वस्थ होता है, तुम्हें इसका अनुभव नहीं होता। यदि शरीर में कोई तनाव, कोई बीमारी, कोई रोग उठ खड़ा होता है, तब तुम शरीर को सुनना आरंभ कर देते हो। यदि सभी कुछ लयबद्धता में है और कोई दर्द, कोई पीड़ा नहीं है, तब अचानक तुम रिक्त हो। एक नाकुछपन तुमको आच्छादित कर लेता है। — कैवल्य परम स्वास्थ्य है, समग्रता है, सारे घाव ठीक हो जाना है। जब सभी घाव ठीक हो गए हैं तो तुम कैसे बने रहोगे? तुम्हारा स्व और कुछ नहीं बल्कि तनावों का संचय है। यह स्व और कुछ नहीं बल्कि बीमारियों, रोगों को सारी विविधता है। यह स्व और कुछ नहीं है, अतृप्त इच्छाएं, हताश आशाएं, अपेक्षाएं, सपने–सभी टूट हुए, छिन्न- भिन्न । यह जिसको तुम स्व कहते हो और कुछ नहीं बल्कि संचित रुग्णता है या इसको दूसरे ढंग से समझ लो जब समस्वरता के क्षण होते हैं तब तुम भूल जाते हो कि तुम हो। शायद बाद में तुम याद कर पाओ कि यह कितना सुंदर क्षण था। कितना आह्लादकारी था यह कितना आनंददायक था यह क्षण। लेकिन वास्तविक आहलाद के क्षणों में, तुम वहां नहीं होते हो। तुमसे बड़ी किसी सत्ता ने तुम पर आधिपत्य कर लिया होता है, तुमसे श्रेष्ठ किसी शक्ति ने तुम पर स्वामित्व कर लिया होता है, तुमसे गहरी कोई चीज उभर आई है तुम खो चुके हो। प्रेम के गहरे क्षणों में, प्रेम करने वाले विलीन हो जाते हैं। मौन के गहरे क्षणों में ध्यान करने वाले मिट जाते हैं। गायन, नृत्य, उत्सव के गहन क्षणों में उत्सव मनाने वाले खो जाते हैं और यह तो अंतिम उत्सव है, परम उच्चतम शिखर - कैवल्य है। पतंजलि कहते हैं. 'बने रहने की इच्छा वी खो जाती है। आत्मभाव की भावना भी मिट जाती है।' व्यक्ति इतना परितृप्त होता है, इतना आत्यंतिक रूप से परितृप्त हो जाता है कि वह होने के बारे में कभी सोचता तक नहीं है। किसलिए सोचेगा वह? तुम कल भी बने रहना चाहते हो क्योंकि आज

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