Book Title: Patanjali Yoga Sutra Part 05
Author(s): Osho
Publisher: Unknown

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Page 430
________________ अतृप्त हो। आने वाले कल की आवश्यकता है; अन्यथा तुम अतृप्त मर जाओगे। बीता कल एक गहन हताशा था आज भी पुनः एक हताशा है आने वाले कल की आवश्यकता है। एक हताश हो चुका मन भविष्य निर्मित करता है। हताश मन भविष्य से चिपक जाता है। हताश मन बना रहना चाहता है, क्योंकि यदि मृत्यु आ जाए तो कोई फूल नहीं खिला है। अभी तक कुछ भी नहीं हो पाया है, वहां केवल एक व्यर्थ की प्रतीक्षा रही है मैं अभी कैसे मर सकता हूं? मैं तो अभी जीया तक नहीं हूं। यह अनजिया जीवन बने रहने की चाह उत्पन्न करता है। लोग मृत्यु से इतना अधिक भयभीत हैं, ये वे ही लोग हैं जो जीए नहीं हैं। ये वे लोग हैं जो एक अर्थ में मरे ही हु हैं। एक व्यक्ति जो जीया है और पूरी तरह से जीया है, मृत्यु के बारे में सोच-विचार नहीं करता। यदि यह आती है, अच्छा है, वह स्वागत करेगा। उसको भी जीएगा वह वह उसका भी उत्सव मना लेगा। जीवन ऐसा आशीष, ऐसा वरदान रहा है कि वह मृत्यु को स्वीकार करने के लिए तैयार है। जीवन एक ऐसा अतिशय अनुभव रहा है कि व्यक्ति मृत्यु के अनुभव के लिए भी तैयार है। वह भयभीत नहीं है, क्योंकि आने वाले कल की आवश्यकता न रही, आज ही इतना अधिक तृप्तिदायी रहा है। वह खिल गया है, पुष्पित हो गया है, उसमें फल आ चुके हैं। अब आने वाले कल की इच्छा खो जाती है। कल की अभिलाषा सदैव भय के कारण होती है, भय है क्योंकि प्रेम अभी तक घटित ही नहीं हो पाया है। सदैव बने रहने की अभिलाषा बस यही प्रदर्शित करती है कि कहीं गहरे में तुम अपने आप को पूरी तरह से अर्थहीन अनुभव कर रहे हो। तुम किसी अर्थ की प्रतीक्षा में हो। एक बार वह अर्थ घटित हो जाए तुम मरने के लिए तैयार हो शांतिपूर्ण ढंग से, सुंदरता के साथ, आशीषमय होकर | 'कैवल्य पतंजलि कहते हैं 'घटता है, जब बने रहने की अंतिम इच्छा भी खो जाती है। सारी समस्या यही है कि बना रहूं या नहीं। सारे जीवन भर हम यह और वह करने का प्रयास करते रहते हैं, और वह परम केवल तभी घट सकता है जब तुम नहीं होते हो। 'जब व्यक्ति विशेष को देख लेता है, तो उसकी आत्मभाव की भावना मिट जाती है।" यह आत्म भाव और कुछ नहीं बल्कि अहंकार का सर्वाधिक परिशुद्ध रूप है। यह तनाव, दवाब, खिंचाव का अंतिम शेषांश है अभी भी तुम पूर्णत: खुले हुए नहीं हो, अभी भी कुछ बंद है जब तुम पूरी तरह से खुले हुए हो, बस शिखर पर खड़े द्रष्टा, साक्षी हो, तब अंतिम इच्छा भी खो जाती है। इस इच्छा के खोने से जीवन में कुछ नितांत नया घटित हो जाता है। एक नया नियम कार्य करना आरंभ कर देता है। गुरुत्वाकर्षण के नियम के बारे में तुमने सुना होगा; तुमने प्रसाद के नियम के बारे मे नहीं सुना होगा । गुरुत्वाकर्षण का नियम यह है कि प्रत्येक वस्तु नीचे की ओर गिरती है। प्रसाद का नियम यह है कि वस्तुएं ऊपर की ओर गिरना आरंभ कर देती हैं और यह नियम होना ही चाहिए क्योंकि जीवन में

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