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आपने मुझको इतना अधिक नृत्य, और इतना अधिक गीत और इतना अधिक आनंद दे दिया है। मैं और अधिक नहीं मांग सकता। इसी को उपयोग करके समाप्त कर पाना संभव नहीं है।
यहीं और अभी में जीना धार्मिक होना है। यहीं और अभी में जीना मन के बिना जीना है। यहीं और अभी जीना बुद्ध हो जाना है। यही है जो उन्होंने कहा था-मैं सजग हूं। क्योंकि देवता भी प्रेरित हो जाते हैं वे भी स्त्रियों का पीछा कर रहे हैं-शायद श्रेष्ठ स्त्रियों का कुछ उच्च तल पर पीछा कर रहे हैं, लेकिन स्त्रियों का पीछा कर रहे हैं। वे एक-दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं।
इस बारे में हिंदू पुराणों में वर्णित कथाएं आत्यंतिक रूप से सुंदर हैं। उन्होंने किसी बात का वर्णन करने में संकोच नहीं किया है। यदि तुम हिंदू पुराणों में लिखी हुई देवताओं की कहानियां सुनो तो तुम बहुत चकित हो जाओगे, वे करीब-करीब मानवीय हैं। वे वही सारी चीजें कर रहे हैं जो तुम कर रहे हो शायद कुछ बेहतर ढंग से या शायद किसी उच्चतर तल पर, लेकिन उनके कृत्य तुम्हारी तरह हैं। उनके प्रमुख, प्रधान देवता का नाम इंद्र है। वह देवताओं का राजा है। और जैसे कि राजा लोग हमेशा होते है-वह सदा भयभीत रहता है और उसका सिंहासन हमेशा डोलता रहता है, क्योंकि कोई न कोई सदैव उसकी टांग खींच रहा होता है। तुम दिल्ली जा सकते हो और लोगों से पूछ सकते हो। जब भी तुम किसी सिंहासन पर बैठते हो, कोई तुमको नीचे खींच रहा होता है, वास्तव में तो अनेक लोग तुम्हारी टांगें खींच रहे होते हैं, क्योंकि वे भी उस सिंहासन पर आसीन होना चाहते हैं। इंद्र लगातार कांपता रहता है। मैं सोचता हूं कि अब तक तो यह कांपना उसकी आदत बन चुकी होगी। भले ही कोई उसकी टांगें खींच रहा हो या नहीं, उसको कांपते रहना चाहिए। शताब्दियों से वह कांपता रहा है। कहानियां कहती हैं कि पृथ्वी पर कोई तपस्वी, कोई संत जब कभी भी अस्तित्व के उच्चतर तलों को उपलब्ध करना आरंभ कर देता है, उसको भय लगने लगता है। उसका सिंहासन डोलने लगता है कोई उसके साथ प्रतिस्पर्धा करने का प्रयास कर रहा है। कोई देवताओं का राजा बनने का प्रय कर रहा है। तुरंत ही वह, बेचारे उस तपस्वी की तपस्या को नष्ट करने के लिए संदर अप्सराएं भेज देता है। वे उसके चारों ओर सुंदर कामुक नृत्य करती हैं, वे उस बेचारे तपस्वी को उसके भटका देती हैं। और तब इंद्र चैन की नींद सोता है : अब एक प्रतिद्वंदी नष्ट कर दिया गया है।
हिंदुओं के स्वर्ग में रास्ते हीरों से जड़े हुए हैं, और वृक्ष सोने के हैं, और पुष्प चांदी, रत्नों और जवाहरातों से बने हुए हैं लेकिन संसार वैसा ही है। वहां स्त्रियां बहुत संदुर हैं लेकिन वही संसार, वही वासना, वही इच्छा। हिंदू कहते हैं, जब उनके सत्कर्म समाप्त हो जाते हैं तब देवताओं तक को पृथ्वी पर पुन: जन्म लेना पड़ता है, जब वे अपने सत्कर्मों का, अपने पुण्यों का उपभोग कर चुके होते हैं तो उनको पृथ्वी पर आना पड़ता है।
यह शब्द 'पुण्य' बहुत अच्छा है।'पूना' नगर का नाम पुण्य से आता है। इसका अर्थ है : सत्कर्मों का नगर। वे देवता उतने ही संसारी हैं जितना यह संसार। एक बार उनका पुण्य, उनका सत्कर्म समाप्त