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लेता है कि यदि तुम प्रेरणा को त्याग देते हो तो जीवन में कोई हताशा नहीं होती। फिर कुछ भी तुमको अप्रसन्न नहीं कर सकता। फिर प्रसन्नता स्वाभाविक होती है; यह बस तुम्हारे होने की शैली बन जाती है। फिर जो कुछ भी होता है, तुम प्रसन्न रहते हो। अभी तो चाहे जो कुछ भी होता हो, तुम अप्रसन्न बने रहते हो।
बुद्ध के पास कोई प्रेरणा नहीं होती, इसलिए वे प्रसन्न हैं। वे इतने प्रसन्न हैं कि यदि तुम उनसे पूछो, क्या आप प्रसन्न हैं? वे अपने कंधे झटक देंगे क्योंकि जाना कैसे जाए? प्रसन्नता को केवल अप्रसन्नता की पृष्ठभूमि में जाना जा सकता है। वे अप्रसन्नता के अनुभव तक को भूल चुके हैं, इसलिए यदि तुम उनसे पूछो, क्या आप प्रसन्न हैं? तो वे चुप भी रह सकते हैं। हो सकता है कि वे कुछ भी न कहें। क्योंकि जब अप्रसन्नता विदा हो गई तो इसके साथ अनुभूतियों का दोहरापन भी समाप्त हो गया। इसी कारण से बुद्ध ने नहीं कहा कि परम अवस्था आनंद की है। नहीं, उन्होंने कहा, यह शांति की अवस्था है, लेकिन आनंद की नहीं।
हिंदू और बौद्धों के मध्य, पतंजलि और बुद्ध के मध्य यह एक अंतर है। यह आधारभूत अंतरों में से एक है। और निःसंदेह दोनों सही हैं; यदि तुम परम. के बारे में जानते हो और जब तुम उसके बारे में कुछ कहते हो, तो बातें इसी भांति हो ही जाती हैं। इसलिए तुम जो कुछ भी कहते हो, यह भले ही कितना विरोधाभासी प्रतीत हो, यह सदैव सही होता है। पतंजलि कहते हैं कि यह आनंद की अवस्था है, क्योंकि सारी पीड़ा, पीड़ा की सारी संभावना मिट चुकी है। निःसंदेह वे सही हैं। बुद्ध कहते हैं, यह आनंद भी नहीं है, क्योंकि कौन यह जानेगा और तुम कैसे जान लोगे कि यह आनंदपूर्ण है? जब सारी पीड़ा खो चुकी है, वहां कोई विरोधी अनुभूति नहीं है, इसको जानने का कोई उपाय नहीं है कि आनंद है, यदि रात्रि पूर्णत: मिट ही गई है तब तुम कैसे जान लोगे कि यह दिन है? यह दिन होगा, किंतु तुम कैसे जानोगे कि यह दिन है? बुद्ध भी सही हैं; यह आनंद होगा, लेकिन इसको आनंद नहीं कहा जा सकता, क्योंकि ऐसा कह कर तुम अप्रसन्नता को भीतर ले आते हो।
व्यक्ति तभी बुद्ध बनता है जब उसने प्रेरणा की संपूर्ण क्रियाविधि को समझ लिया है। प्रेरणा क्या है? –यह वर्तमान में अतृप्ति, वर्तमान में असहजता, और भविष्य में एक आशा है। प्रेरणा अभी और यहीं में अतृप्ति है, और कहीं भविष्य में परितृप्ति का स्वप्न है।
तुम एक छोटे से घर में रहते हो; इस छोटे से घर के साथ तुम अप्रसन्न हो, अभी और यहीं में अतृप्त हो, और तुम भविष्य में एक बड़े घर की आशा लगाते हो। भविष्य की जरूरत है, ठीक अभी बडा घर संभव नहीं है। इसको बनाने के. लिए-धन कमाने में, हजारों काम करने में, घर को पूरा करने में समय की आवश्यकता पड़ेगी, तब बड़ा घर संभव हो सकेगा। इसलिए ठीक अभी तुम अतृप्ति में हो, लेकिन भविष्य में तुम्हारे पास परितृप्ति का एक स्वप्न है। तुम कठोर परिश्रम करते हो। तब कहीं जाकर एक दिन बड़ा घर संभव हो पाता है, लेकिन अचानक तुम देखते हो कि तुमको परितृप्ति जैसा कछ भी नहीं घट रहा है। जिस क्षण बडा घर उपलब्ध हो जाता है तम और बड़े घर के लिए सोचने