________________
आश्रम में तुम अनाज का एक दाना भी यहां-वहां पड़ा हुआ नहीं देख सकते हो, तुमको सम्मानपूर्ण होना पड़ता है। और याद रहे, इस सम्मान का गांधी के अर्थशास्त्र से कोई संबंध नहीं है। यहां कोई अर्थशास्त्र का प्रश्न नहीं है, क्योंकि गांधीवादी अर्थशास्त्र तर्कयुक्त कंजूसी के सिवाय और कुछ भी नहीं। क्योंकि इस झेन दृष्टिकोण का कंजूसी से कुछ भी लेना-देना नहीं है। यह प्रत्येक वस्तु के प्रति सम्मान, आत्यंतिक सम्मान है। अनाज को इस भांति फेंक देना, असम्मानजनक था यह। यह वही मूल विचार था जिसे उपनिषद में ऋषियों ने कहा था, 'अन्नम् ब्रह्म' -भोजन परमात्मा है क्योंकि भोजन तुमको जीवन देता है, भोजन तुम्हारी ऊर्जा है। परमात्मा तुम्हारे शरीर में भोजन के माध्यम से आता है, तुम्हारा रक्त, तुम्हारी अस्थियां बन जाता है। इसलिए परमात्मा को परमात्मा की तरह समझना चाहिए। जब इन देवताओं ने उस रास्ते पर गेहूं और चावल के दाने बिखेर दिए, जहां से तो-सान
ने वाला था, तो यह देख कर वह विश्वास न कर सका, 'यह किसने किया है? कौन इतना लापरवाह हो गया है?' उसने मन में एक विचार उठा, और कथा यह है कि तभी एक क्षण के लिए देवतागण उसका चेहरा देख सके, क्योंकि उस एक क्षण के लिए एक बहुत सूक्ष्म ढंग से 'मैं उठ खड़ा हुआ था, 'यह किसने किया है? कुछ गलत हो गया है।'
और जब कभी तुम यह निर्णय लेते हों-क्या उचित है और क्या अनुचित, उस समय तुम वहां उपस्थित होते हो। उचित और अनुचित के मध्य अहंकार का अस्तित्व होता है। एक विचार और दूसरे विचार के मध्य अहंकार का अस्तित्व होता है। प्रत्येक विचार अपना स्वयं का अहं लेकर आता है। एक पल के लिए तो–सान की चेतना में एक बादल उठ गया- 'यह किसने किया है?' – एक तनाव। प्रत्येक विचार एक तनाव है। यहां तक कि बहुत सामान्य, बहुत मासूम दीखने वाले विचार भी तनाव
हैं।
तुम देखते हो-उपवन सुंदर है, सूर्योदय हो रहा है और पक्षी चहचहा रहे हैं, और एक विचार उठता है, 'कितना सुंदर!' यह भी, यह भी एक तनाव है। इसीलिए यदि तुम्हारे साथ कोई चल रहा है, तो तुरंत तुम उससे कहोगे, 'देखो कितनी खूबसूरत सुबह है!' तुम क्या कर रहे हो? तुम बस उस तनाव को निकाल रहे हो जो उस विचार के माध्यम से आ गया है। सुंदर सुबह.. .एक विचार आ गया, इसने तुम्हारे चारों ओर एक तनाव निर्मित कर दिया है। अब तुम्हारा अस्तित्व तनावरहित नहीं रहा। इस तनाव को निकालना पड़ेगा, इसलिए तुमने दूसरे व्यक्ति से कह दिया। अर्थहीन है यह कहना, क्योंकि वह भी वहीं खड़ा है जहां तुम खड़े हो। वह भी पक्षियों के गीतों को सुन रहा है, वह भी सूर्य को उदित होते हुए देख रहा है, वह भी पुष्पों को देख रहा है, इसलिए इस प्रकार की बात कहने में कि 'यह सुंदर है' क्या सार है? क्या वह अंधा है? किंतु वह बात नहीं है। तुम उस तक कोई संदेश पहुंचा नहीं रहे हो। संदेश उसके लिए भी उतना ही स्पष्ट है जितना कि तुम्हारे लिए। वास्तव में तुम अपने आपको उस तनाव से मुक्त कर रहे हो इस बात को कह कर। वह विचार वातावरण में विसर्जित हो गया, तुम एक बोझ से निर्भार हो गए।