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तुम्हारा मन उठ खड़ा होगा। तुम एक बौद्ध का मन बन जाओगे। तुम एक ईसाई का मन हो जाओगे। एक विशेष प्रकार के मन के लिए एक विशेष केंद्रीय व्यक्तित्व की आवश्यकता पड़ती है।
और वह निःसंदेह जीसस की तुलना में क्राइस्ट के पक्ष में अधिक है। इसको भी समझ लेना पड़ेगा। पवित्र अहंकार ऐसे ही तो उठ खड़ा होता है। जीसस ठीक हम लोगों की भांति हैं एक इनसान जिसके पास शरीर है, सामान्य जीवन है, नितांत मानवीय हैं जीसस। एक बहत बड़े अहंकारी के लिए अब इससे काम नहीं चलेगा। उसको एक अत्यधिक परिशोधित व्यक्तित्व की आवश्यकता है। क्राइस्ट परिशोधित जीसस के सिवाय कुछ और नहीं हैं। यह बस ऐसा ही है कि तुम दूध का दही जमा लो फिर इससे मक्खन निकाल लो, और फिर उस मक्खन से घी निकाल लो। वह घी दूध का शुद्धतम अवयव, सर्वाधिक आवश्यक तत्व है। अब तुम घी से और कुछ नहीं बना सकते। घी अंतिम परिशोधन है। सफेद पेट्रोल की तरह : मिट्टी के तेल से पेट्रोल; पेट्रोल से सफेद पेट्रोल। अब और नहीं, परिशोधन का अंत हो गया। क्राइस्ट तो बस परिशोधित जीसस हैं। रूडोल्फ स्टीनर के लिए जीसस को स्वीकार कर पाना कठिन है, और सभी अहंकारियों के लिए यह कठिन है। वे कई उपायों से अस्वीकृत करने का प्रयास करते हैं।
उदाहरण के लिए, ईसाई कहते हैं, उनका जन्म एक कुंवारी मां से हुआ। मूलभूत समस्या यह है कि ईसाई लोग यह स्वीकार नहीं कर सकते कि जीसस का जन्म हम सामान्य इनसानों की भांति हुआ था। फिर वे भी सामान्य दिखाई पड़ेंगे। उनको विशिष्ट होना पड़ेगा, और हमें विशेष गरु का शिष्य होना चाहिए। बदध की भांति नहीं, जिनका जन्म आम मानवीय प्रेम संबंध से, सामान्य मानवीय काम-संभोग से हुआ है, नहीं-जीसस विशिष्ट हैं। विशिष्ट लोगों को विशिष्ट पैगंबर की जरूरत होती है, जो कुंआरी मां से जन्मा हो! और वे ईश्वर के एकमात्र पुत्र हैं, एकमात्र, क्योंकि यदि और पुत्र हो तो वे विशिष्ट नहीं रह पाएंगे। वे एक मात्र मसीहा हैं, एकमात्र जिनको ईश्वर ने इस कार्य हेतु स्वयं सत्तारूढ़ किया है। सभी दूसरे, अधिक से अधिक संदेशवाहक हो सकते हैं, लेकिन उस तल और उस स्तर के नहीं हो सकते जो क्राइस्ट का है। ईसाइयों ने इस बात को अपने ढंग से कह दिया है, किंतु मैं चाहंगा कि क्राइस्ट से अधिक तुम जीसस को समझो-क्योंकि जीसस को समझना और अधिक आनददायी रहेगा, उनको समझना और अधिक शांतिदायी रहेगा, और इस पथ पर अत्यधिक सहायक होगा। क्योंकि तुम जीसस होने की स्थिति में हो, क्राइस्ट होना बस एक स्वप्न है।
पहले तुमको जीसस होने से गुजरना पड़ेगा, और केवल तब किसी दिन तुम्हारे भीतर क्राइस्ट जाग जाएगा। क्राइस्ट तो अस्तित्व की मात्र एक अवस्था है, जैसे कि बुध अस्तित्व की मात्र एक अवस्था हैं। गौतम बुद्ध बन गए, जीसस क्राइस्ट बन गए। तुम भी क्राइस्ट बन सकते हो, लेकिन ठीक इस समय क्राइस्ट बहुत दूर है। तुम उसके बारे में विचार कर सकते हो, और इसके बारे में दर्शनशास्त्रों
और धर्म- विज्ञानों का निर्माण कर सकते हो, लेकिन इससे कोई सहायता नहीं मिलने जा रही है। ठीक अभी जीसस को समझ लेना बेहतर है, क्योंकि यही वह अवस्था है जहां तुम हो। यही वह बिंदु है