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सदा ज्ञाताश्चित्तवृत्तयस्तत्पक्षो पुरुषस्यापरिणामित्वात् ।
तत्प्रभो:, उस प्रभु की खोज करनी है। वह तुम्हारे भीतर छिपा है, तुम्हें उसकी खोज करनी पड़ेगो । जैसे भी हो, वह उपस्थित है। जो कुछ भी तुम करते हो, उसे करने वाला वही है। जो कुछ भी तुम देखते हो, उसका द्रष्टा वही है। यहां तक कि तुम जो कुछ भी चाह करते हो, यह वही है जिसने चाहा है प्याज की भांति, परत दर परत तुमको अपने आप को छीलना पड़ेगा। किंतु अपने आप को क्रोधपूर्वक नहीं बल्कि प्रेमपूर्वक छीलो स्वयं को बहुत सावधानी पूर्वक, सजगता से छीलो
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क्योंकि जिसे तुम छील रहे हो वही परमात्मा है। बहुत प्रार्थना पूर्वक छीलो । आत्म- पीड़क मत बन जाओ। अपने आपके लिए पीड़ा निर्मित मत करो। पीड़ा का आनंद मत लो। यदि तुमने पीड़ा में आनंद आरंभ कर दिया और तुम स्व-पीड़क बन गए, तो तुम आत्मघातीयात्रा पर जा रहे हो तुम अपने आप को नष्ट कर लोगे व्यक्ति को बहुत बहुत ही चौकन्ना, सावधान और सृजनात्मक रहना पड़ता है। तुम एक पवित्र भूमि पर चल रहे हो।
जब मूसा पर्वत शिखर पर पहुंच गए जहां उनकी भेंट परमात्मा से हुई, तो उन्होंने क्या देखा? उन्होंने एक झाड़ी, एक ज्योति, एक अग्नि को देखा और उन्होंने एक आवाज सुनी: अपने जूते उतार दो, क्योंकि जिस पर तुम चल रहे हो यह पवित्र भूमि है। लेकिन तुम जहां भी चल रहे हो तुम पवित्र भूमि पर ही चल रहे हो। जब तुम अपने शरीर का स्पर्श करते हो तब तुम किसी पवित्र वस्तु का स्पर्श कर रहे हो। जब तुम कुछ खा रहे हो तुम कुछ पवित्र ही खा रहे हो, अन्नम् ब्रह्मः, भोजन परमात्मा है जब तुम किसी को प्रेम करते हो, तुम दिव्यता को प्रेम कर रहे हो, क्योंकि वही लाखों रूपों में चारों ओर है। यह वही है जो अभिव्यक्त हो रहा है।
इसे सदैव अपने मन में रखना, जिससे कोई विक्षिप्तता तुम पर हावी न हो सके। संतुलित और प्रशांत बने रहो, बस मध्य के मार्ग पर चलते रहो और तुम कभी भटकोगे नहीं, तुम कभी असंतुलित, एकांगी नहीं होओगे।
योग संतुलन है। योग को संतुलन बनना पड़ता है, क्योंकि यह परम एकता का, जो कुछ है उस सभी की, चरम लयबद्धता का मार्ग बनने जा रहा है।
आज इतना ही।