________________
जहां से यात्रा को आरंभ किया जाना है। जीसस से प्रेम करो, क्योंकि जीसस को प्रेम करने के माध्यम से तुम अपनी इनसानियत को प्रेम करोगे। जीसस को, और विरोधाभास को समझने का प्रयास करो, और उस विरोधाभास के माध्यम से तुम स्वयं को कम दोषी अनुभव करने में समर्थ हो सकोगे। जीसस के प्रति अपनी समझ के माध्यम से तुम स्वयं को और अधिक प्रेम कर पाओगे।
अब ईसाई लोग जीसस के जीवन के विरोधाभास को, क्राइस्ट की अवधारणा के दवारा किसी भांति छिपाने का प्रयास करते रहते हैं। उदाहरण के लिए ऐसे क्षण भी हैं जब जीसस क्रोध में हैं, अब यह एक समस्या है, क्या किया जाए? इस तथ्य को छिपाना बेहद कठिन है, क्योंकि अनेक बार वे क्रोधित होते हैं, यह उनकी शिक्षाओं के विरोध में जाता है। वे लगातार प्रेम के बारे में बात करते रहते हैं, और स्वयं ही क्रोधित हैं। और वे अपने शत्रुओं को क्षमा करने की बात करते है-न केवल यह, बल्कि अपने शत्रुओं को प्रेम करने की बात करते हैं लेकिन वे स्वयं अपने क्रोध में कोड़े बरसाते हैं। जेरुसलम के मंदिर में उन्होंने कोड़ा उठा लिया और सूदखोरों को पीटना आरंभ कर दिया, और अकेले ही उनको मंदिर के बाहर धकेल दिया। वह तो अवश्य ही वास्तविक रोष में, आक्रोश में, लगभग विक्षिप्त अवस्था में होंगे। अब यह घटना.. .इसको किस भांति समझाया जाए? इसकी व्याख्या करने के लिए ईसाइयों ने जो उपाय खोजा है-और रूडोल्फ स्टीनर ने अपनी विचारधारा का आधार इसी बात पर रखा हैवह है क्राइस्ट को निर्मित करना, जिसको पूरी तरह समझाया जा सकता है। जीसस के बारे में सब कुछ भूल जाओ, क्राइस्ट की एक शुद्ध अवधारणा प्रस्तुत करो। उस क्षण के लिए तुम कह सकते हो, 'जब वे क्रोध में थे, उस समय वे जीसस थे। और जब क्रास पर, सूली चढ़ाए जाते समय उन्होंने कहा,
मेरे पिता, इन लोगों को क्षमा कर दे, क्योंकि वे नहीं जानते कि वे क्या कर रहे हैं। उस समय वे क्राइस्ट थे। अब इस विरोधाभास की व्याख्या की जा सकती है। जब वे किसी स्त्री के साथ जा रहे हैं, तब वे जीसस हैं; जब उन्होंने मेरी मेग्दलीन से कहा कि वह उनको न छुए, तब वे जीसस थे। इन दो अवधारणाओं ने घटनाओं को समझाने में सहायता की-किंतु ऐसा करके तुम जीसस का सौंदर्य नष्ट कर देते हो, क्योंकि उनका सारा सौंदर्य इसी विरोधाभास में है।
उन्हें संबंधित करने की कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि जीसस के अस्तित्व की गहराई में वे अंतरसंबंधित हैं। वास्तव में वे इसीलिए क्रोधित हो पाए, क्योंकि उन्होंने अत्यधिक प्रेम किया था। उन्होंने इतने आत्यंतिक रूप से प्रेम किया था, इसलिए वे क्रोधित हो पाए। उनका क्रोध घृणा का भाग नहीं था, यह उनके प्रेम का एक अंग था। क्या कभी तुमने प्रेम से जन्मे क्रोध को नहीं देखा है? तब समस्या कहां है? तम अपने बच्चे को प्रेम करते हो; कभी तम बच्चे को थप्पड मार देते हो, तम बच्चे को पीट देते हो, कभी तो तुम करीब-करीब क्रोध के पागलपन में हो जाते हो, लेकिन यह सब प्रेम के कारण होता है। ऐसा इसलिए नहीं होता क्योंकि तुम घृणा करते हो। वे इतना अधिक प्रेम करते थेजीसस के बारे में मेरी समझ यही है कि वे इतना प्रेम करते थे कि वे क्रोध में सभी कुछ भूल गए और वे क्रोधित हो उठे। उनका प्रेम बहत अधिक था। वे मात्र एक मुर्दा संत नहीं थे, वे एक जीवित