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दूसरा प्रश्न :
जब मैं पौधों, नदियों, पर्वतों, पशुओं, पक्षियों और आकाश के सान्निध्य में होता हूं, तो मुझको ठीक लगता है। किंतु जब मैं लोगों के मध्य आ जाता हूं, तो मुझको ऐसा लगता है, जैसे कि मैं किसी पागलखाने में आ गया हूं, यह विभाजन क्यो है?
जब तुम वृक्षों के, आकाश के, नदी के, चट्टानों के, फूलों के साथ होते हो और तुमको ठीक लगता
है, तो तुमसे इसका जरा भी लेना-देना नहीं है। इसका संबंध वृक्षों से, नदियों से और चट्टानों से है। यह ठीकपन उनके मौन से आता है। जब तुम मनुष्यों के निकट आते हो, तब तुम्हें पागलपन लगने लगता है, जैसे कि तुम पागलखाने में आ गए हो। क्योंकि लोग तो दर्पण हैं, वे तुमको प्रतिबिंबित करते हैं। तब तो तुमको ही पागल होना चाहिए, इसीलिए जब तुम लोगों के साथ होते हो उस समय तुमको लगता है जैसे कि तुम किसी पागलखाने में हो। मुझको ऐसा अनुभव कभी नहीं हुआ। यहां तक कि तुम जैसे पागल लोगों के साथ भी मुझे ऐसा अनुभव कभी नहीं हुआ।
यह उन मूलभूत समस्याओं में से एक है जिसका सामना धर्म का प्रत्येक खोजी करता है।
जब तुम अकेले होते हो तो सभी कुछ ठीक-ठाक लगता है, क्योंकि वहां पर शांति भंग करने के लिए कोई नहीं होता। कोई तुम्हें विचलित होने का अवसर प्रदान नहीं करता। सभी कुछ शांत है, इसलिए तुम भी एक विशेष शांति अनुभव करते हो, लेकिन यह मौन प्राकृतिक है। इसमें आध्यात्मिकता जरा भी नहीं है। यह प्रकृति का मौन है। यदि तुम हिमालय पर, हिमालय के शिखरों की शीतलता और उनके सन्नाटे में चले जाओ, तो तुमको शांति अनुभव होगी। लेकिन इसका श्रेय हिमालय को जाता है, तुमको नहीं। जब तुम वापस लौटोगे तो तुम उसी व्यक्ति की भांति लौट कर आओगे जो गया था। तुम अपने भीतर हिमालय को नहीं ला पाओगे। इसीलिए अनेक लोग वहां गए, और यह सोच कर गए कि अब यदि वे संसार में वापस चले जाते हैं तो जो कुछ उन्होंने अर्जित किया है उसको वे खो देंगे, वे सदा के लिए वहीं रह गए। उनको कुछ भी उपलब्ध नहीं हुआ है। क्योंकि एक बार तुम इसे अर्जित कर लो, तो यह खो नहीं सकती; और संसार इसी की परीक्षा है। इसलिए जब कोई मनुष्य नहीं होता, और तब तुमको अच्छा लगता है, यह बस इतनी सी बात प्रदर्शित करता है कि लोगों के बीच तुम्हारा भीतरी पागलपन सक्रिय हो जाता है। इसलिए पलायनवादी मत बनो, और समाज को, लोगों को, भीड़ को दोषी मत ठहराओ। ऐसा मत कहो कि यह पागलखाना है। बल्कि यह सोचना आरंभ करो कि अवश्य ही तुम विक्षिप्तता की मनोवृत्तियां अपने भीतर लिए घूम रहे हो, जो जब तुम लोगों से संबंधित होते हो तो प्रकट हो जाती हैं।