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प्यारे ओशो, मैं आपको, आपके शब्दों के पीछे, एक स्त्री के एक रूप में आपके प्रति आपकी प्रेमपूर्ण करूणा को, सुनती हूं, यह कभी-कभी मुझे आंदोलित कर देती है, और मैं यह भी अनुभव करती हूं कि संबोधि के आनंद को अनुभव करने के लिए मेरा स्त्रीपन मुख्य बाधा है। क्योंकि सभी संबुद्ध व्यक्ति जिनको आप बात करते है, पुरुष है, और शायद यह इसलिए है क्योंकि आपके निजी अनुभव भी एक पुरुष के रूप में है। एक स्त्री के रूप में मेरे लिए संबोधि क्या है, कृपा इसके बारे में आप कुछ कहना चाहेंगे।
पहली बात, समझ पाने के लिए स्त्री होना कभी अवरोध नहीं होता है। वस्तुत: मुझको समझ पाने
का इससे बेहतर अवसर तुमको नहीं मिल सकता। पुरुष के लिए समझ पाना कठिन है क्योंकि पुरुष के पास आक्रामक मन है। पुरुष आसानी से वैज्ञानिक बन जाता है, लेकिन उसके लिए एक धार्मिक व्यक्ति बन पाना बहुत कठिन है, क्योंकि धर्म को ग्रहणशीलता की, चेतना की एक निष्क्रिय अवस्था की आवश्यकता होती है, जिसमें तुम आक्रमण न करो, आमंत्रित करो। समझने के लिए, शिष्य होने के लिए स्त्रैण मन बिलकुल उचित मन है। पुरुष मन को भी स्त्रैण मन बनना पड़ता है। इसलिए इसे एक अवरोध की भांति मत समझो, यह रुकावट नहीं है।
दूसरी बात, यह वास्तव में एक बड़ी समस्या है, क्योंकि हम इसको नहीं समझते। समस्याएं केवल इसीलिए हैं क्योंकि हम उन्हें समझते नहीं हैं। बार-बार यह मुझसे पूछा जाता है कि मैं सदैव उन पुरुषों के बारे में क्यों बोलता हूं जो सबुद्ध हुए, लेकिन सबुद्ध स्त्रियों के बारे में क्यों नहीं बोलता हूं। अनेक स्त्रियां ज्ञानोपलब्ध हुई हैं, जितने पुरुष उतनी स्त्रियां। प्रकृति एक विशेष संतुलन बना कर रखती है। देखो.. .संसार में स्त्रियों और पुरुषों की संख्या करीब-करीब एक सी रहती है। ऐसा होना तो नहीं चाहिए, लेकिन प्रकृति संतुलन बना कर रखती है। हो सकता है कि एक व्यक्ति के घर में केवल लडकों का ही, दस लड़कों का जन्म हो; किसी और के घर में शायद केवल एक ही लड़के का जन्म हो, किसी और के घर में केवल एक लड़की का जन्म हो लेकिन पूरे संसार में प्रकृति सदैव संतुलन बना कर रखती है। यहां पर उतने ही पुरुष हैं जितनी कि स्त्रियां हैं। न केवल यही, बल्कि स्त्री पुरुष की तुलना में अधिक शक्तिशाली होती है-अपनी प्रतिरोधक क्षमता, स्थायित्व, समायोजन की क्षमता में, लोचपूर्ण होने में, वह अधिक बलशाली है-सौ लड़कियों पर एक सौ पंद्रह लड़कों का जन्म होता है। लेकिन जिस समय तक वे लड़कियां विवाह योग्य होती हैं वे पंद्रह लड़के विदा हो चुके होते हैं। लड़कियों की तुलना में अधिक लड़कों की मृत्यु होती है। प्रकृति यह व्यवस्था भी करती है। सौ लडकियां और एक सौ पंद्रह लड़कों का जन्म होता है, फिर विवाह योग्य अवस्था आते-आते पंद्रह लड़के काल के गाल में समा जाते हैं। संतुलन को पूरी तरह बना कर रखा जाता है। न केवल यही, बल्कि जब युद्ध के समय में अधिक पुरुष मरते हैं तब भी संतुलन बना दिया जाता है।