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केवल अपना स्वयं का काम कर रहा है। वह तुम्हारी एकाग्रता या तुम्हारे ध्यान या किसी भी चीज को नष्ट नहीं कर रहा है। वह तुम्हारे धर्म के बारे में, तुम्हारे बारे में, जरा भी चिंतित नहीं है। हो सकता है कि उसे पता भी न हो कि तुम क्या मूर्खता कर रहे हो वह तो बस अपने जीवन का अपने ढंग से मजा ले रहा है नहीं, वह तुम्हारा शत्रु नहीं है।
जरा निरीक्षण करना. .घर में यदि एक व्यक्ति धार्मिक हो जाता है, तो सारा घर मुसीबत में पड़ जाता है, क्योंकि वह व्यक्ति लगातार विचलित होने की सीमा रेखा पर रहता है। वह प्रार्थना कर रहा है; कोई जरा भी आवाज न करे वह ध्यान कर रहा है; बच्चों को खामोश रहना चाहिए, कोई भी खेलेगा नहीं। तुम अस्तित्व पर अनावश्यक शर्तें थोप रहे हो। और तब यदि तुम विचलित हो जाते हो और तुमको व्यवधान अनुभव होता है, तो केवल तुम ही उत्तरदायी हो। केवल तुम पर ही आरोप लगाया जाना चाहिए, किसी और पर नहीं ।
जिसे रूडोल्फ स्टीनर ध्यान कहता है वह एकाग्रता के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है और एकाग्रता के द्वारा तुम अहंकार खो सकते हो और तुमको मैं मिल जाएगा और यह 'मैं एक बहुत सूक्ष्म अहंकार के सिवाय और कुछ भी नहीं होगा। तुम एक पवित्र अहकारी बन जाओगे, तुम्हारा अहंकार धर्म की भाषा से अलंकृत हो जाएगा, किंतु यह वहीं होगा ।
'उसके लिए केंद्रीय व्यक्तित्व क्राइस्ट हैं, जिनको वह जीसस से पूर्णत: भिन्न व्यक्तित्व के रूप में अलग कर देता है।'
अब ध्यान करने वाले के लिए केंद्रीय व्यक्तित्व कोई हो ही नहीं सकता, उसकी कोई आवश्यकता नहीं है। किंतु जो एकाग्रता करता है उसे एकाग्र होने के लिए किसी की आवश्यकता पड़ती है। रुडोल्फ स्टीनर कहता है कि क्राइस्ट केंद्रीय व्यक्तित्व हैं। बुद्ध क्यों नहीं हैं? पतंजलि क्यों नहीं है? महावीर क्यों नहीं हैं? क्राइस्ट क्यों? बौद्धों के लिए बुद्ध केंद्रीय व्यक्तित्व हैं, क्राइस्ट नहीं। उन सभी को
एकाग्रता साधने के लिए कोई ऐसी वस्तु जिस पर वे अपने मन को केंद्रित कर सकें, कुछ चाहिए । धार्मिक व्यक्ति के लिए कोई केंद्रीय व्यक्तित्व नहीं होता। यदि तुम्हारा स्वयं का केंद्रीय अहंकार खो चुका है या खो रहा है, तो तुम्हें इसको सहारा देने के बाहर किसी अन्य अहंकार की जरा भी आवश्यकता नहीं है। वह क्राइस्ट या वह बुद्ध, पुन: कहीं और का एक अहंकार है। तुम एक मैं-तू की ध्रुवीयता निर्मित कर रहे हो। तुम कहते हो, क्राइस्ट, आप मेरे मालिक हैं, किंतु यह कहेगा कौन? यह कहने के लिए एक 'मैं' की आवश्यकता है। देखो, झेन बौद्धों की सुनो। वे कहते हैं, यदि रास्ते में तुम्हारा बुद्ध से मिलना हो जाए, तो तुरंत उनको मार डालो। यदि रास्ते में तुम्हारा बुद्ध से मिलना
हो जाए तो तुरंत उनको मार डालो, अन्यथा वे तुमको मार डालेंगे। उनको एक मौका भी मत दो,
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अन्यथा वे तुम पर हावी हो जाएंगे, और वे केंद्रीय व्यक्तित्व बन जाएंगे। उनके चारों ओर पुनः