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वास्तव में रूडोल्फ स्टीनर से तुलना किए जाने के लिए और कोई मनीषी मिल पाना अत्यंत दुर्लभ बात है। वह अनेक दिशाओं और आयामों में इतना प्रतिभावान था कि यह करीब-करीब अतिमानवीय प्रतीत होता है. महान तार्किक, विचारक, महान दर्शनशास्त्री, महान वास्तुविद, महान शिक्षाशास्त्री, और न जाने क्या-क्या। और जिस विषय को भी उसने छू दिया उस विषय में वह बहुत अनूठे विचार ले आया। जिस किसी ओर भी उसने दृष्टिपात किया, उसने विचारों के नये प्रारूप निर्मित कर दिए। वह एक महान व्यक्ति, श्रेष्ठ मन था, लेकिन मन अक्षम हो या सक्षम, चाहे वह जैसा भी हो उसका धर्म से जरा भी लेना-देना नहीं है।
धर्म का उदय अ-मन से होता है। धर्म कोई प्रतिभा नहीं है, यह तुम्हारा स्वभाव है। यदि तुम एक महान चित्रकार बनना चाहते हो, तब तुमको प्रतिभाशाली होना पड़ेगा; यदि तुम एक महान कवि बनना चाहते हो, तब तुमको प्रतिभावान होना पड़ेगा; यदि तुम एक वैज्ञानिक बनना चाहते हो तो निःसंदेह तुमको प्रतिभाशाली होना पड़ेगा, किंतु यदि तुम धार्मिक होना चाहते हो, तो किसी विशेष प्रतिभा की आवश्यकता नहीं है। कोई भी व्यक्ति, चाहे छोटा हो या बड़ा, जो भी मन को गिरा देने की अभीप्सा रखता है, दिव्यता के आयाम में प्रविष्ट हो जाता है। और निःसंदेह महान प्रतिभाशाली मन के लोगों के लिए अपने मनों को गिरा देना बहत कठिन है, क्योंकि उन्होंने मन में अपना बहत कछ लगा रखा है। एक सामान्य व्यक्ति के लिए' जिसके पास कोई प्रतिभा नहीं है अपने मन को गिरा देना बहुत सरल है। फिर भी यह कितना कठिन प्रतीत होता है। उसके पास खोने के लिए कुछ भी नही है, फिर भी वह मन से चिपके चला जाता है। जब तुम्हारे पास एक प्रतिभाशाली मन हो, जब तुम मेधावी हो, तब निःसंदेह यह कठिनाई बहुगुणित हो जाती है। तब तुम्हारा सारा अहंकार तुम्हारे मन में ही निवेशित हो गया है। तुम उसे गिरा नहीं सकते।
रूडोल्फ स्टीनर ने थियोसॉफी के विरोध में एथोपोसॉफी नाम से एक नये आंदोलन की आधारशिला रखी। आरंभ में वह थियोसॉफिस्ट था, फिर आंदोलन में सम्मिलित अन्य अहंकारों से उसके अहंकार ने संघर्ष करना आरंभ कर दिया। वह उसका शीर्षस्थ अधिकारी, संसार भर के थियोसॉफिस्ट आंदोलन का सर्वोच्च, वैश्विक अध्यक्ष बनना चाहता था। यह संभव न था, वह से अन्य अहंकार भी थे। और सबसे बड़ी समस्या जे. कृष्णमूर्ति-जों अहंकार तो जरा भी नहीं थे- की ओर से आ रही थी। और निःसंदेह थियोसॉफिस्ट लोग कृष्णमूर्ति की ओर उन्मुख होने के बारे में और-और सोच रहे थे। धीरेधीरे वे मसीहा बनते जा रहे थे। इसी बात ने रूडोल्फ स्टीनर के मन में चिंता उत्पन्न कर दी। उसने आंदोलन से नाता तोड लिया। थियोसॉफी आंदोलन की परी जर्मन शाखा उसके साथ ही अलग हो गई। वास्तव में वह अत्यंत प्रभावशाली वक्ता, एक प्रभावशाली लेखक था, उसने लोगों को अपनी बात मानने के लिए राजी कर लिया। उसने थियोसॉफी को बहुत बुरी तरह से नष्ट कर दिया उसने इसे विभाजित कर दिया। और इसके बाद से थियोसॉफी आंदोलन कभी संपूर्ण और समग्र नहीं हो सका।