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स्कोल्फ स्टीनर के पास पश्चिमी मन के लिए एक आकर्षण है, और यही खतरा है- क्योंकि पश्चिमी मन मूलतः तर्क उन्मुख है, तर्क रखना, विचार करना, व्यवस्थित अध्ययन करना वह इसी के बारे में बात करता है, और वह कहता है, 'पश्चिमी मन के लिए यही ढंग है।' नहीं, पूर्वीय हो या पाश्चात्य, मन तो मन है, और अ-मन है इसे गिराने का उपाय यदि तुम पूर्वीय हो, तो तुमको पूर्वीय मन को गिराना पड़ेगा।
यदि तुम पाश्चात्य हो, तो तुम्हें पश्चिमी मन को गिराना पडेगा। ध्यान में गति करने के लिए मन को जैसा वह है उसी रूप में गिरा देना पड़ता है। यदि तुम ईसाई हो, तो तुम्हें ईसाई मन गिराना पड़ेगा । यदि तुम हिंदू हो, तो तुम को हिंदू मन को गिराना पड़ेगा। ध्यान को ईसाई, हिंदू पूर्वीय, पाश्चात्य, भारतीय या जर्मन, इन सभी से कोई सरोकार नहीं है।
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मन क्या है? समाज के द्वारा तुम्हें दी गई संस्कारिता का नाम मन है। यह उस मौलिक मन के ऊपर अध्यारोपण है, जिसको हम अ-मन कहते हैं। बस जरा भी संशयग्रस्त मत होओ, पूरा मन चाहे यह जैसा भी है, को गिरा देना पड़ता है। दिव्यता के तुम्हारे भीतर प्रवेश करने के लिए रास्ता पूरी तरह खाली होना चाहिए। विचार करना ध्यान नहीं है। यहां तक कि सम्यक विचार भी ध्यान नहीं है। उचित हो या अनुचित विचार करने को गिरा देना पड़ता है जब तुम्हारे भीतर कोई विचार न हो, विचार-प्रक्रिया की कोई धुंध तुम्हारे भीतर न हो, तब अहंकार मिट जाता है और स्मरण रखो, जब अहंकार मिट जाता है, तो मैं भी नहीं मिलता। प्रश्नकर्ता ने कहा, कि रूडोल्फ स्टीनर कहता है, 'जब अहंकार मिट जाता है तो 'मैं' मिलता है।' नहीं, जब अहंकार खो जाता है तो मैं नहीं मिलता। कुछ भी नहीं मिलता। ही, बिलकुल ठीक, कुछ नहीं.. . मिलता है।
अभी उस रात्रि को मैं महान झेन मास्टर तो -सान की एक कथा सुना रहा था। वह रिक्त हो गया, वह सबुद्ध हो गया - वह अनस्तित्व, जिसको बौद्ध अनता, अमन कहते हैं, वही हो गया। यह खबर देवताओं तक पहुंच गई कि कोई व्यक्ति पुन: सबुद्ध हो गया है। और, निःसंदेह जब कोई व्यक्ति सबुद्ध हो जाता है, तो देवतागण उसका चेहरा, चेहरे का सौंदर्य, मौलिकता का सौंदर्य, उसका कुंवारापन देखना चाहते हैं। देवतागण नीचे उतर कर उस आश्रम में आए जिसमें तो -सान रहता था। उन्होंने यहां देखा और वहां देखा, और उन लोगों ने कोशिश की, और वे उसके भीतर एक ओर से प्रविष्ट होते और दूसरी ओर से बाहर निकल जाते, और तो -सान के भीतर उनको कोई न मिलता। बहुत हताश हो गए थे वे सभी वे चेहरा, मौलिक चेहरा देखना चाहते थे, और वहां भीतर कोई नहीं था। उन्होंने अनेक उपाय करके देखे। और फिर एक बहुत चालाक, चतुर देवता ने कहा, एक काम करो - वह आश्रम के चौके में दौड़ कर गया, वह एक मुट्ठी चावल और गेहूं लेकर आया तो सान अपनी सुबह की सैर करके वापस लौट रहा था, और उस देवता ने ये अनाज उसके रास्ते में बिखेर दिए ।
झेन आश्रम में प्रत्येक वस्तु का आत्यंतिक सम्मान किया जाता है, चावल और गेहूं पत्थर तक, प्रत्येक वस्तु का सम्मान किया जाता है। व्यक्ति को सतत सावधान और जागरूक रहना पड़ता है। झे